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विश्वज्योति महावीर परास्त कर दिया । इस प्रकार महावीर की साहस गाथाएँ पुराने चरित्र ग्रन्थों में जो अंकित हैं, वे युगान्तर तक अभय, साहस एवं शौर्य की प्रेरणास्त्रोत रही हैं और रहेंगी।
शिक्षा-दीक्षा
शिक्षण के लिए उन्हें तत्कालीन एक प्रसिद्ध गुरुकुल में प्रविष्ट किया गया, परन्तु वहाँ का वातावरण उन्हें सन्तुष्ट नहीं कर सका । महावीर की जिज्ञासा कुछ और थी, जिसका वहाँ कोई समाधान नहीं था । बाहर से थोपी गई शिक्षा-दीक्षा में उन्हें रुचि नहीं थी । जो स्वयं प्रकाश होता है, उसे बाहर के अन्य प्रकाश की क्या अपेक्षा ? वे तो विकास के हर क्षेत्र में अन्दर से स्वयं अंकुरित होने वाले शक्तिबीज थे । कथाकार कहते हैं कि उन्होंने बचपन में ही देवराज इन्द्र की जटिल शंकाओं का तर्कसंगत समाधान किया था । कुछ भी हो, इसका इतना अर्थ तो अवश्य है कि महावीर जन्मजात प्रतिभा के धनी थे । उनके मन-मस्तिष्क सचेतन थे । वे हर किसी उलझे हुए प्रश्न पर अपनी ओर से उचित समाधान प्रस्तुत कर सकते थे ।
बचपन और किशोर अवस्था के बाद उनका जीवन किन राहों से गुजरा, इस सम्बन्ध में कोई विशिष्ट उल्लेख कथासाहित्य में अंकित नहीं है । श्वेताम्बर परम्परा के आचार्य उनके विवाह की बात करते हैं, और एक पुत्री होने की भी । अपने राष्ट्र की विकासयोजनाओं में उन्होंने क्या किया, सर्वसाधारण जनता के अभावों एवं दुःखों को दूर करने की दिशा में उन्होंने अपना क्या पराक्रम दिखाया, राष्ट्र की सीमाओं पर इधर-उधर से होने वाले आक्रमणों के प्रतीकार में उनका क्या महत्त्वपूर्ण योगदान रहा, ऐसे कुछ प्रश्न है, जिनका महावीर के जीवन के साथ घनिष्ट सम्बन्ध जुड़ा है, किन्तु महावीर के लिखित जीवन चरित्रों में इन का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिलता, यद्यपि एक प्रबुद्ध, साहसी, तेजस्वी एवं दयाशील राजकुमार के जीवन में प्रायः ऐसा घटित हुआ करता है। हम यह नहीं मान सकते कि महावीर के जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ हो,
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