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विद्याकुर
लड़की के मा बाप दोनों मर जाते हैं वह यतीम बोले जाते हे ॥ जब आदमी के बदन से जान निकल जाती है वह मुर्दा हो जाता है। फिर वह न कुछ देख सुन सकता है और न हिलता जुलता और चलता फिरता है । मिट्टी की तरह पड़ा रहता है । और मिट्टी ही में मिल जाता है ।
आदमी की पूरी उमर एक सौ बरस की कही जातो हे पर वीच का कुछ ठिकाना नहीं कोई नहीं कह सकता है। कि किस दिन मर जावे मरना सब के पीछे लगा पड़ा है। नित आंखों में देखा जाता है। जैसे हमारे वाप दादा परदादा इस टुन्या से उठ गये वैसे ही एक दिन हम को भी सब छोड़ छाड़ कर उठ जाना है ॥ अपने पुण्य पाप यानो नेको बदी के सिवाय न वे कुछ साट्य ले गये। न हम ले जायेंगे ॥ हम सब को ऐसा हो काम करना चाहिये जिस से मरने पर लाली बनी रहे ॥ अपने पैदा करनेवाले के साम्हने नीची गर्दन न करनी पड़े ॥ काम उसी का बना । जिस का परलोक सुधरा ॥
आदमियों को किसमें
श्रादमी सब एक ही किसम के नहीं होते बड़ी इन को तीन किममें हैं। पहले जंगली दूसरे चरवाहे तोसरे तमीजदार इन में जंगली प्रादमियों को अपने रहने सहने का कुछ सेचि नहीं रहता न वो खेतो बारी करते हैं न अपने खाने पहनने का कुछ सामान इकट्ठा कर रखते हैं। जब भूख लगो जंगल में जाकर जानवर उड़ने तेरने चलने वाले ना मिले मार लाये । उन के मांस से पेट भर लिया और उन के पर और चमड़े ओढ़ने बिछाने के काम में आये। ऐसे पामो मिलकर एक जगह नहीं ठहः
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