________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
५२
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विद्यांकर
चन्द्र ग्रहण कहते हैं अगर ज़मीन नारंगी की तरह गोल न होती । उस की परछाई सदा सब हालतों में चांद पर कभी गोल न पड़ती ॥ ज़मीन और चांद के घूमने का हिसाब करने से ठीक मालूम हो जाता है कि कब कितना ग्रहण लगेगा | और किस किस जगह से दिखलायी देगा | क्योंकि जहां गत है वहां से काहे को सूरज ग्रहण देखने में आसकेगा । और वहां दिन है वहां से काहे को चन्द्र ग्रहण नज़र पड़ेगा
ज़मीन के हिस्से
के
दो तिहाई से ज़ियादा जल से ढकी है वही समुद्र कहलाता है । एक तिहाई धन यानी खुश्क कुछ एक ही जगह नहीं पड़ा है ॥ दे- सब से बड़े टुकड़े महा द्वीप कहलाते हैं । बाक़ी छोटे छोटे टापू सैकड़ों गिने जाते हैं। पुराने महा द्वीप यानी पुरानी दुन्या पूरब के हिस्से यानी एशिया में हिन्दुस्तान अफ़्ग़ानिस्तान ईरान तूगन करब शाम तातार चीन वग़र मुलक और पच्छम के हिस्से यानी फ़रंगिस्तान में रूस प्रून जर्मनी रूम यूनान हस्पानिया पुर्तगाल फ्रांस डेनमार्क हॉलैंड वग़ैर मुल्क और दक्खन के हिस्से यानी अफुरीका में मिसर हवश जंगबार वग़ैरः मुल्क बसे हैं । नये महा द्वीप यानी नयी दुन्या कि जिसे अमरीका कहते हैं और जिस की राह सन् १५०० ई0 के करीब से मालूम हुई है दो हिस्से उत्तर और दक्खन के नाम से पुकारे जाते हैं ॥
ज़मीन पर कहीं तो ऐसी सर्दी पड़ती है कि बारहों महीने बर्फ़ जमा रहता है । और कहीं ऐसी गर्मी कि जिस से आदमी काला हो जाता है ॥ सबब इस का यह है कि ज़मीन के घूमने में उस के जो हिस्से बराबर सूरज के सामने रहते हैं
For Private and Personal Use Only