Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir vo विद्यांकुर मा टुकड़ा ही है। बहुतेरे मुलक ऐसे पड़े हैं कि जिन में एक एक इस से बहुत बड़ा है। उन में तरह तरह की चीजें पैदा होती है। यह न समझो कि जो यहां होती है कहीं दूसरी जगह नहीं मिलती हैं। देखा केसर बादाम होंग धारः सब सामान दूसरे मुलकों से यहां पाता है। और इसी तरह रुई शक्कर नील वगरः यहां से दूसरे मुलकों को जाता है। ज़मीन को नाप और शकल शागिर्द-आप के कहने से मालम होता है कि ज़मीन का अंत ही नहीं। बराबर बट्टाढाल चली गयी है कहीं न कहीं। उस्ताद-ज़मीन बट्टाढाल नहीं है । बलकि नारंगी को तरह गोल है । पच्चीस हज़ार बीस मोल यानी बारह हज़ार पांच सौ दस कोस / २५०२०मील का उस का घेरा है। और अटकल से प्राय:४०० ०कोस, पाठ हज़ार मोल यानी चार हजार कोस का उस का व्यास नापा गया है ॥ ___शागिर्द-ज़मीन नारंगी की तरह गोल क्या कर हो सकती है। आंखों से तो चकले या चक्को के पाट को तरह बट्टाढाल दिखलायी देती है। उस्ताद-समुद्र के कनारे जाकर अगर दूर से किसी आते हुए जहाज़ पर निगाह दौड़ाओगे। पहले उस का मस्तल यानी सब से ऊपर का हिस्सा और तब नां जां पास आता बायगा धोरे धीरे उस के नीचे के हिस्से यहां तक कि जब कनारे से लग जायगा उस का पेंदा भी देखोगे .॥ जो ज़मीन गोल न होती। मस्तल और पेंदे पर साथ ही नज़र पहुंचती । For Private and Personal Use Only

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