Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

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Page 83
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहला हिस्सा नज़र पड़ता है | यही हाल सब उपग्रहों का है। दरबोन से देखा तो अपर्ण और पर्ण का सब में इसी तरह बखेड़ा नंगा है ॥ केतु याना दुमदार ( झाड़ के तारे । भो सूरज के गिर्द घमते हैं। बहुत हैं लेकिन अभी उन का हाल जेसा चाहिये मालूम नहीं हुआ है इसी लिये उन के निकलने और डूत्र ने का वक्त ठीक नहीं बतला सकते हैं | निदान ग्रह उपग्रह और केतु को छोड़कर बाकी सब सूरज के तरह नक्ष व हें । बार अनुमान करते हैं कि उन के गिर्द भी ग्रह वगैर: घमते हैं । और तअज्जब नहीं कि उन में उन के माफिक जानदार भी हों क्योंकि उस मालिक पैदा करनेवालेन बे फ़ायदा कुछ नहीं पैदा किया । ले.ि.न ग्यारहवां ग्रह यूरेनम सूरज से एक अर्ब अस्सी करोड़ मील दूर है ज़रा तुम ने इस पर भी ध्यान दिया । और फिर छोटे से छोटा तारा भी एक ऐसा ही मरज है । यहाँ से पास पास दिखनायो देते हैं लेकिन आपस में उन का तकावत एक दूसरे से करोड़ों बन का अर्थी स है ॥ इन नक्षत्र में जो सब से ज़ियादा ज़मीन के नजदं क है । उस को भी रोशनो यहां तक तान बास में पहुंचती है। बहुतेरे तो इतनी दूर हैं कि जब से उनको पैदाइश हुई उन की रोशनो चला आती है लेकिन आजतक यहां नहीं पहुंची ॥ तुम इन तारोंको जो दिखलायो देते हैं गिनतीपे बाहर समझते हो। बेशक हर्गिज़ नहीं गिन सकते हो | लेकिन ने दिखलायो नहीं देते वह कितने होंगे अकल विनकुल हैगन है। जितनी बड़ो दरबोन तय्यार होती है उतनेही नये तारे आंख के सामने चमकने लगते हैं समझ बिलकुल परेशान है। और फिर तमाशा यह कि सारा तारा मण्डल उस को For Private and Personal Use Only

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