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विद्यांकुर
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से एक के अंक पर पहचती है। और उतनी ही देर में बड़ी सूई पूरा चक्कर करके बारह के अंक पर आ जाती है। इस घड़ी में घंटों की गिनती दहने से होती है यानी बारह के अंक से दोनों सइयां दहनी तरफ़ चलती हैं छोटी सई बारह के अंक से जितने अंकों पर फिर चुको हो उतने घंटे और बड़ी सूई मिनट के जिस Hit निशान पर हो उतने मिनट उन घंटों पर मानला। जैसा कि इस तस्वीर में छोटी सूई । पांच के अंक पर है और मिनट वाली यानी ५ बड़ी सई एक के अंक से एक मिनट ज़ियादा पर है तो समझो कि पांच घंटे पर छ मिनट हुए अच्छो तरह तस्वीर में देखा ॥
यहां वाले मरज निकलने से दिन गिनते हैं लेकिन अंगरेज़ लोग आधीगत से दिन का हिसाब करते हैं । और इसी लिये अंगरेजो घड़ियों में आधीरात और दोपहर को बारह बजते हें ॥ घड़ी बनाने के लिये बड़ी चतुराई चाहिये फ़रंगिस्तान ही से बनकर आती हैं। और बड़े दामो पर बिकती हैं ॥ इसी लिये यहां अक्सर बाल या पानी को घड़ी से काम चलाते हैं। या धूप घड़ी बना लेते हैं ॥ शीशा भा फ़रं. गिस्तान में बिल्लौर कासा साफ निहायत उमदा बनता है। बाल और सोडा का जो एक किस्म की सज्जो होती है कड़ी पांच देने से तय्यार हो जाता है ॥ ऐघ उस में इतना ही है। कि टूटता जलद है ॥ से सुनते हैं कि अब वहां किमी ने ऐसी भी तर्कीब निकाली है कि शोश न टूटे। वलकि टूट ने के बदल चमड़े की तरह लचक जावे
॥ इति ॥
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