Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

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Page 84
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्यांकुर पैदाइश का एक बाल का दाना भी नहीं। निर्मल नोल आस्मान में रात के वक्त उत्तर से दक्वन को जो हलके हलके बादल के से सफ़ेद सफ़ेद टुकड़े दिखलायी देते हैं जिन को आकाश गंगा और नागवीथी भी कहते हैं बादल के बादल एक एक तारा मंडल है कौन जाने उस की पैदाइश में ऐसे ऐसे कितने तारा मंडल पड़े होंगे कब किसी ने इस का पता पाया कहीं ॥ ज़मीन तीन सौ पैंसठ दिन पांच घंटे छप्पन मिनट और संतालीस सिकंड यानी तीन सौ पैंसठ दिन चौदह घड़ी बावन पल में सूरज के गिर्द घूम आती है वही उस का बरस है। हिन्द कुछ कम मानते हैं यहो तीसरे साल लांद का एक महीना बढ़ाने का सबब है। ज़मीन लट्ट की तरह अपनी धुरी पर भी चौबीस घंटे में पच्छम से पूरब को घूमा करती है । उस का आधा हिस्सा जे। सरज के सामने रहता है उस में दिन और जो नहीं रहता है उस में रात रहती है ॥ नीचे ज़मीन की तसवीर यानी एक गोला है और उस में डोरी लगा कर एक आदमी उस को घुमा रहा है । सूरज की जगह पर बत्ती जला दी है उस गोले का जो का हिस्सा बत्ती के सामने आता जाता है उस पर उजाला. और जो जो ओट में पड़ता जाता है उस पर अंधेरा 'गाया दिन और रात का नमना दिखलाता है ॥ ज़मीन के उत्तर और दक्खन ध्रुवों पर यानी उस की अनुमित धुरी के दोनों सिरों पर छ महीने का दिन और छ महीने की रात For Private and Personal Use Only

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