Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

View full book text
Previous | Next

Page 70
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्याकुर बढ़ेगी। लेकिन तवे की गर्मी आधी से भी कम रह जावेगी। जब ज़मीन के पास ज़ियादा सर्दी होती हे वही कुहासा ओस बन जाता है। घास और पत्तों में बंद बंद पानो मातियों की तरह लटका करता है । जाड़े के दिनों में इसी तरह आदमी की नाक और मुंह से सांस के साथ निकली हुई भाफ उस की मछों पर या फंका तो शीशे पर जम कर आस बन जाती है। यानो पानी के छोटे छोटे परमाणुओं की शक्ल में दिखलायो देने लगती है | अगर ज़मीन के पास इस से भी ज़ियादा सर्दी हो वही आस जम कर पाना यानी यख बन जाये। और घास पत्तों पर पीसे हुए नमक या मिसरी की शकल पर नज़र आये ॥ लेकिन जब ज़मीन के पास सर्दी नहीं गर्मी रहती है। यह भाफ उड़ी हुई ऊपर चली जाती है ॥ यहां तक कि सर्दी पाकर बादल बनती है। और वज़न बढ़ने से फिर नीचे की तरफ़ गिरती है । अगर वहां ऊपर सर्दी ज़ियादा हुई बादल जम कर पानी की बंदे बन गया। मेह होकर बरस पड़ा ॥ अगर वहां सर्दी इस से भी ज़ियादा हुई बादल जम कर बर्फ होगया। और धुनते वकत जिस तरह रूई के फाये उड़ते हैं ठीक उसी तरह सर्द मुलकों में और हिमालय के से ऊंचे पहाड़ों पर भी गिरने लगा लेकिन अगर पानी होने पर ज़ियादा सर्दी में पड़ा । जम कर यकबारगो यख यानी पाला यानी आना बन गया ॥ जितनी पानी को बंदै इकट्रा हो जाती है । उतनी हो बिनालियां (ोले) बड़ी और भारी होती है ॥ बर्फ और यख के भीतर कुछ हवा भी रह जाती है इस लिये पानो से हलका होता है। और पानो पर तिरता है। बादल पांच मोल से ज़ियादा ज़मीन के ऊपर नहीं जाते हैं। बन कि अक्सर एक हो मोन के भीतर रहा करते हैं। समुह For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89