Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

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Page 68
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्यांकुर ध्रुव मत्स्य - - - उत्तर ইয়ান वायव्य पश्चिम प्राग्नेय MER LA नेस सीप कौर तरह तरह कहीं दक्षिण समुद्र में पानी पर तरह तरह की मछलियां तेरती हैं। संख घोंघे सीए कोड़ी थाह या किनारों से चिपटी रहती है। कहीं कहीं सीपों में से जो होतेखोर गोता मार कर निकाल लाते हैं मोती भी निकलते हैं। मूंगा वही है जो समुद्र की थाह में एक तरह के कीड़े अपने रहने का घर बनाते हैं । स्पंज भी जो पानी सोख लेता है और जिसे अक्सर नादान मुर्दा बादल बतलाते हैं एक तरह के कीड़ों का घर है। उस की जगह समुद्र के अंदर है ॥ पत्थर को चट्टानों से चिपटा रहता है। समुद्र में तालाब नदियों की तरह सिकार भी लिस से विलायती शीशा बनाते है हुआ करता है ॥ ज़मीन पर पांच मील तक पहाड़ का उंचाई नापी गयी है। उसी तरह समुद्र की गहराई को पांच मील तक थाह ली गयी है ? आस पाला मेह और बादल शागिर्द-समुद्र से भाफ क्यों उठा करती है। उस्ताद-जिस तरह आग को गो लगकर अधेन में से भाप, निकलती हे उसी तरह मूरज की गर्मी लगकर समद ज़मीन पहाड़ मदी कोल बनस्पति जीवजन्न तमाम चीज से माफ निकला For Private and Personal Use Only

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