Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्याकुर खुशब या बदबू के परमाणु जब हवा के वसीले से नाक में पहुंचते हैं। उसकी नाजूक नसे उन का असर सिर के भेजे तक पहुंचाकर संघनेवाले के मन को उस से ख़बार करदेती हैं और बे नाकवाले नकटे कहलाते हैं । ___ मीठा तीखा खट्टा खारा कड़वा कसैला इन छओं में से जिन को संस्कृत में घटस कहते हैं जिस मजे के परमाणु जीभ पर जा पहुंचते हैं । उस की नाजूक नसे उन का असर सिर के भेजे तक पहुंचाकर चखनेवाले के मन को उस का हाल बतला देती है आदमी इसी जीभ के वसीले से बोलता है जिनके जीभ नहीं या बेडौल है और बोल नहीं सकते वे गंगे कहलाते हैं। ___ चमड़े से छूकर जो बात मालम करनी है मालूम करते हैं। चमड़ा छूते ही उस की नाजुक नसे वह चोज़ कड़ी है या नर्म ठंढी है या गर्म तुर्त सिर के भेजे में उस छूनेवाले के मन को चिता देती हैं लेकिन हाथ और उन में भी उंगलियों के सिरे और सब जगह के चमड़े से बिहतर काम देते हैं । ___ इन्हीं पांचों इन्द्रियों के वसीले से जो कुछ जाना और समझा बझा जाता है। उसी को याद रखने से मालमात बढ़ता हे और तजरबा हासिल होता है । उसो का जोड़ तोड़ लगाने और कतर व्योत करने से आदमी अपना बचाव कर सकता है । और अपने सारे काम निकाल सकता है ॥ ज्ञान यानी इल्म यानी जानने की यही जड़ हैं । जो यह न हों तो फिर हम तुम सब मिट्टी के लेांदे हैं ॥ शुक्र है उस मालिक पैदा करनेवाले का कि कैसी केसी चीजें हम लोगों को दी हैं। और केसी कैसी राहें हम लोगों के सुख चैन की निकाली है। For Private and Personal Use Only

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