Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्यांकुर कंगन मोहनमाला पचलड़ी चंपाकलो हार बाली पत्ने झूमके जंजीर बाजूबंद छल्ले सब उसी से तय्यार होते हैं। चांदी पर सोने का पत्तर चढ़ाकर उसका बहुत पतला तार खींच लेते हैं। और फिर उस तार को रेशम पर लपेट कर कलाबतन बनाते हैं । सोने का पत्तर सब घात से बढ़कर पतला पिट सकता है। यानी साढ़े तीन तोले सोने का पत्ता बढ़ाया जाय तो डेढ़ सौ फट लंबा और उतना ही चौड़ा हो सकता है और अगर उतने ही सोने का तार खींचा जाय तो एक सौ मील लंबा खिच सकता है ॥ चांदी का रुपया बनता है और जिन का सोना नहीं मिलता उसी के गहने बनवा लेते हैं । और अमीर उमरा चांदी सोने के बरतन और और भी बहुत चीजें बनवाते हैं। पर आदमी का काम जैला लोहे से निकलता है दूसरी धात से नहीं निकलता । अगर लोहा न होता कुछ भी नहीं हो सकता ॥ फौलाद इसी लोहे से बनाते हैं। आग में ताव देदेकर ठंडे पानी में बुझाते चले जाते हैं। वह जितने ताव खाता है। उतना ही कड़ा और कीमती हो जाता है। कैची चाकू तीर सलवार जो चीज़ फ़ौलाद से बनती है। उसकी धार और नॉक बहुत तेज़ रहती है ॥ देखा लोहे से कितनी चीजें बनती हैं। तवा कढ़ाहो हसवा चमटा संडसी हथौड़ा कुल्हाड़ी बमला आरी फावड़ा रुखानी बरमा गुलमेख कांटा रेती सरीता ताली ताला सांकल कुंडा सिटकिनी कबज़ा बंदक बरछा ताप तपंचा सब इसी से तव्यार होते हैं । चुम्बक को यहां वाले एक तरह का पत्थर बतलाते हैं पर जानने वाले उसे एक तरह का कच्चा लोहा जानते हैं । जामीन के अंदर से निकलता है। और लोहे से भी बनता है। उस में दो बातें बड़े अचरज की हैं यानी एक तो यह कि For Private and Personal Use Only

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