Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहला हिस्सा मकोड़ा न धुस जाय झालरदार पर्दै को तरह उस पर बरोनी समेत पत्नक लगा दी है । जिन्हें दिखलायो नहीं देता वे अंधे कहलाते हैं। और टटोल टटोल कर या दूसरों से पूछ पूछ कर अपना काम चलाते हैं। आंख की पुतली के बीच में जो एक चमकता हुआ तारा सा दिखलायी देता है। उसी पर जिस तरह शीशे पर जन किसी चीज़ की परछाई पड़ती है वह परछाई एक नस के ज़ोर से सिर के भेजे तक पहुंचकर देखनेवाले का मन उस चीज़ का रंग रुप जान लेता है ॥ लड़कों को ज़रूर शक होगा कि आंखों पर पर छाईं पड़ने से मन क्योंकर कुछ जान सकेगा। लेकिन इस देखने का यानी उजाला अंधेरा परछाई और रंग सब का भेद जब वह मिहनत करके ज़ियादा पढ़ेगे तभी अच्छी तरह उन की समझ में आवेगा ॥ __ आवाज़ हवा के वसीले से यानी किसी चीज़ के धक्के से पैदाहुई हवा की लहर जब कान में उस झिल्ली से (जिस तरह पानी को लहर किनारे से) जिस से ढोल की तरह कान भीतर से मढ़ा रहता है। टकराती है सुनने वाले का मन उस आवाज़ का समझ लेता है । जिस तरह के ज़ोर और पेच से वह हवा को लहर उस झिल्ली तक पहुंचती है। वैसी ही वह मोठी या कड़वी नर्म या कड़ी मालम होती है | इस झिल्ली को कान का पर्दी कहते हैं । जिन का बिगड़ जाता है वह कुछ नहीं सुनते और बहरे कहलाते हैं ॥ बहुत तोपों की निहायत जोर की आवाज़ से अकसर किवाड़ के शीशे टूट जाते हैं। कान के पर्दे फट जाते हैं ॥ कल से किसी बन्द बरतन को हवा निकालकर अगर उस में घंटी बजायो जावेगी। रम की आवाज़ कुछ भी सुनने में न आवेगी । For Private and Personal Use Only

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