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विद्याकुर
साफ़ और इतना ज़ोर से बोलना चाहिये । कि जिस के लिये बोले वह अच्छी तरह सुन और समझ ले ॥ आदमी जितना मीठा बोलेगा। उतना ही लोगों का प्यारा बनेगा ॥ और जित. ना सच कहेगा । उतना ही लोगों का उस पर भरोसा रहेगा ॥ जहां तक बन पड़े। क्या लड़का क्या जवान और क्या बड़ा कभी कोई अपने मुंह से कड़वो और झूठी बात न निकाले ।
देस देस के आदमियों को बोलियां जुदा जुदा होती हैं। देखा फारस की फ़ारसी अरब को अरबी यनान को यनानी रूम की समी इंगलिस्तान की अंगरेजी और हिन्दुस्तान को हिन्दुस्तानी कहलातो हैं ॥ पर बड़ा देस हाने से कहीं कहीं हर सूबे बनकि हर जिल को बोली जदा जुदा हो जाती है। जैसे हिन्दुस्तान में कश्मीरी पंजाबी नयपाली गुजगती माहटी तेलंगो काटको द्रावड़ी तामलो मैथिली बंगाली सिंधो बगा: अपनी अपनी जगह में बोली जाती है ॥ ब्रज यानी मथुरा के आस पास को बोली ब्रज, भाषा कहलाती है। उस से बढ़कर मीठी और प्यारो हिन्दुस्तान भर में कोई दूसरी बोनी नहीं सुनी जाती है ॥ मुसलमानों को बादशाही में उन के उर्दू यानी लश्करी वाज़ार के दर्मियान जब तुर्क मुग़ल पठान यहां के हिन्दुओं के साथ लेन देन बनज व्यापार और बात चीत करने लगे उन को तुर्की फ़ारसी कारबी इन की खरो हिन्दी के साथ मिल कर जो बो नो बनो उर्दू कहलायी। और अब सारी कवहारयों में वही काम आर्यः । सारी दुन्या में दो हज़ार से ऊपर बोलियां बोली जाती हैं। जितना घूमो फिरो नयो हो नयी सुनने में प्रातो हें ।
लिखना और हापना आदमी सब वक्त और सब जगह मुंह से बोल कर अपने जीको बात नहीं कहसकता है । अगर दूसरा कोसों दूर है या यहीं
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