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पहला हिस्सा
१
किसान खेती बारी से केसी के सो चोज अनाज शक्कर रुई पेटा करता है । फिर व्यापारी उन का कहां से कहां पहुंचाता है। कारीगर उसी रूई के केसे कैसे कपड़े बनाता है । और यह नोकर चाकरों की मदद है कि जिस से हर एक इन तीनों में से अपना अपना काम मन मानता कर सकता है । सच हे अगर मिहनत न हो । कुछ भी न हो यह इसी का फल है कि जो गेहं दाल चावल मेवे मिठाई खाने को बनात छींट मलमल ख़ासा नैन नैनसुख पहनने को घड़ी अर्गन बंटम पिस्तौल ताला कुंजी चाकू कैचो शोशे चोनी के बरतन तरह तरह के खिलाने हज़ारों साजा सामान अमवाब ज़रूरी और पाराम के जब जहां चाहो मिल सकते हैं। निदान ज़रूरत दूर करने को वाह आराम मिलने का सभी कुछ न कुछ मिह'नत किया करते हैं ॥ दरजी माचो लाहार बढ़ई रंगरेज़ धोबी हलवाई तेली बनिया सह्हाक रंगसाज़ शोशेगर मुलम्मावाला तमखेग मुहरकन मुसव्विर कागजो अत्तार बज्जाज़ सरीफ़ बैद हक म हर एक अपने अपने काम में लगा रहता है। जबकि मक्खी चींटी भी मिहनत करतो हैं सिवाय पागल सोदाई के कोई ऐसा नहीं जो हाथ पर हाथ धरे निठल्ला निकम्मा बैठा रहता है । मसल मशहर हे बेटे से बेगार भली । जिस ने मिहनत को उसी की बात बनी ___ लेकिन आदमी इतनी मिहनत भी न करे । कि वोमार पड़ कर मर जावे । मिहनत के लिये दस घंटा रोज़ हट्ट है। उस में भी दो एक घंटा खाने खेलने जो बहलाने के लिये बहुत ज़रूर है ॥ जो बीमारी से बचना चाहता हे खाने में जल्दी न करे। और कच्ची कड़ी सड़ी गली और ऐसी चीज़ का जलद ज़म नहीं होती या बीमारी चैदा करती है कभी न खाये ।
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