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पहिला हिस्सा
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दो सौ फट तक लबा होता है। बड़े अचरज को बात यह है कि फलों के खिलने और बंद होने का वक्षत भी जूदा जदा है। कमद (कोई) रात को खिलता और दिन को बंद होता और कमल (कवल) दिन को खिलता और रात को बंद होता है।
पेड़ या दरएल अक्सर उसे कहते हैं जिसकी पीड (तना) जड़ से एक ही निकल कर और कुछ दूर ऊपर जाकर उस में से टहनियां फूटती हैं । झाड़ छोटा होता है जड़ ही से उसकी टहनियां निकल पड़ती हैं ॥ बेल अपने बल से नहीं खड़ी होती है । धरती पर रस्सी की तरह पड़ी बढ़ा करती है । जिसको जड़ ही से लंबी लंबी पत्ती निकलती है। वह घास कहलाली है ॥ आम इमली का पेड़ झड़बेरी का झाड़ खीरे ककड़ी की बेल कही जाती हैं । और ऊख बांस नरसल सरहरी जो गेहूं ज्वार बाजरा धान कपास सन अलसी यह सब घास की किमम कहने में आती इस में शक नहीं कि नित की बोल चाल में घास उसी को समझते हैं। जो आप से आप दूब की तरह बिना बोये पैदा होती है और जिसको गाय बेल चरते हैं। लेकिन याद रक्खो घास अटकल से चार हज़ार किसम को होतो है । और जितनी चरी और काटी जाती है उतनी ही बढ़ती है। कपास के फल से रूई निकलती है । ऊख के रस से गुड़ शक्कर बतासा कैद राब चीनी मिसरी बनती है।
पहाड़ के पत्थरों पर जहां घास जमने के लिये मिट्टी नहीं होती पानी से काई पैदाहोकर सूखतेसूखते इतनी इकट्ठी होजाती है। कि उसी में जब किसो ढब हवा से उड़कर या चिड़ियों की मीट में पड़ कर कोई बोज पहुंच जाता है घाम जमने लगती है।
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