Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहिला हिस्सा हैं । अमरिका वाले किसी का खिताब नहीं देते हैं। सब को भाई की बराबर समझते हैं । उदिज बेल बटे घाम पात फल फल के पेड़ काई सिवार इन सब में भी अण्डज और जरायुज यानो पिंडज की तरह जान रहती है। क्योंकि अंधेरा उजाला और मर्दी गर्मा इन पर भी वैसा हो मनसर करती है। यह फ़र्क अलबत्ता बड़ा है कि अण्डज और पिंडज चल फिर सकते हैं । और ये जहां उगते हैं वहीं जमे खडे रहते हैं ॥ पेड़ों की छाल बाहर कड़ी और सूखी रहती है। और वही उन को बचाती है ॥ भीतर उन की छाल गोली होती है। और उस के भीतर नर्म लकड़ो और फिर उस के भीतर कड़ी लकड़ी और वही पेड़ का वाझ संभालती है ॥ किसी किसी पेड़ में उस कड़ी लकड़ी के भीतर कुछ गूदा सा रहता है। इसो तरह आदमी के बदन में बाहर का चमड़ा भीतर का चमड़ा मास हड्डी र हड्डो का गूदा हुआ करता है ॥ देखा इन के पत्तों में कैसी नसें फैली हुई हैं। आदमा के वदन में भी इसी तरह फैली रहती हैं ॥ आदमी फेफड़े से सांस लेते है। पेड़ इन्हो पत्तों से सांस लिया करते हैं | जो किसी ऐड़ को ऐसी जगह में रख दो जहां उसे सांस लेने का हवा न मिले। वह भी आदमी की तरह दम घुट कर मर जावे यानी सूख जावे ॥ उन का मुंह वही जड़ है जो धरती के भीतर रहती है। और सूरज की गर्मी का जोर पाकर धरती का पानी खोंचती है ॥ जिस तरह आदमी के क्दन में सब जगह लोह घूमता है। उसी तरह वह पानी पेड़ों में डाल डाल और पात पात फिरा करताहे। इसी से वह हरे और डह डहे बने रहते हैं लेकिन जाड़ों में मुरज को गर्मी घट जाने से धरती का पानी यानी रस उनमें ऊपर For Private and Personal Use Only

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