Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहला स्मा अपने मरने के पीछे किसी काम के लिये कुछ कह नाना चाहता है क्या कर मुंह से समझा सकता है । इसी लिये अकलमंदों ने ऐसे संकेत जिन्हें अक्षर कहते हैं ठहरालिये। कि जिन से वकत और जगह दोनों को दी दर हा कर पास आगये। जेसी जैसी आवाज़ मुंह से निकलती है हर एक के लिये एक एक अक्षर ठहराया है। और फिर उसे सियाही और शंगर्फ घगरः से लिखने को तरह तरह का काग़ज़ बनाया है। जब तक काग़ज़ बनाने की हिक्मत मालम नहीं थी लोग चमड़े और पेड़ों के पत्ते और उन की छाल पर लिखते थे । और वैसे ही कलम भी रखते थे। हिन्दुस्तान के अक्सर हिस्सों में लोग अब तक भोजपत्र और ताड़पत्र पर लिखते हैं। बलकि उन को काग़ज़ से बिहतर समझते हैं | अक्षर भो जुदा जुदा देस में जुदा जुदा किस्म के लिखे जाते हैं। जिन अक्षरों में यह पोथी लिखो है नागरी या देवनागरी कहलाते हैं । देखा अक्षरों का लिखना सोख लेने से हमारे कैसे कैसे काम निकलते हैं। जो अपने प्यारे दोस्त भाई बन्द लड़के बाले सैकड़ों बल्कि हज़ारों कोस दर हैं उन के साथ भी चिट्ठी पत्री के वसोले से अपने मन की बात चीत कर सकते और जिन को मरे सैकड़ों बलकि हज़ारों बरस होगये उन के मन की बातेंभीउनकोबनायी हुई किताबों के वसीले से अच्छी तरह सुन सकते हैं। क्योंकि किसी को चिट्ठी पढ़ना या किसी को बनायो किताब देखना गोया उसके मुंह से निकली बातों का सुनना है। जिन को मरे अब हज़ारों बरस होगये उन की बनायी हुई किताब का हाथ में उठा लेना गोया उन को बुलाकर अपने सामने विठा लेना हे । सिवाय इसके आदमी जितना देखता सुनता हे और दुनया के ऊंच नीच For Private and Personal Use Only

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