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विद्योग
भहीं तीसरी वा बीस हज़ार मक्विर्या जो नर न मादा पर सारा काम छत्ता बनाना शहद इकट्ठा करना गनो का बचाना बच्चों को पालना वही करती हैं ॥ राना एक से ज़ियादा नहीं होती। और जो हुई भी तो तुर्त मार कर बाहर निकाली गयो । अब भादों कुवार में अंडे देने का दिन हो चुकता है वो बीस हजार मिहनतो मक्खियां दो हज़ार नरों को मार डालती हैं ॥ और इन निकम्मी मक्खियों को नाहक न खिला कर सारा शहद जाडों में अपने ही खाने को रखती हैं ।
शहद को मक्खियां जहां छत्ता बनाना चाहती हैं। पहले वहां के सब छेद और दगरों को भर देती हैं और फलों का पराग यानी उन की पंखड़ी पर जो गर्द सी जमी रहती है खाने से उन के पेट में माम बन जाता है उसी से वो छ छ कोने वाले घरों का छत्ता बनाती हैं | बहुत से घर तो शहद से भरे होते हैं। और बहुतों में अंडे रहते हैं ॥ वही एक रानी चालीस हज़ार के लगभग अंडे देती है । वो अंडे थोड़े ही दिनों में घुन से होकर फिर एक अठवाड़े में उन पर खेाल चढ़ जाती है ॥ जब तक घुन की शकल में रहते हैं मिहनती मक्खियां उन को चुगा पहुंचाती हैं । और जब उन पर खोल चढ़ जाती है उन के घरों को माम से बंद कर देती हैं । वोही पंदरह दिन में मक्खी बन कर और उस माम को जिस से बंद रहते हैं हटाकर बाहर निकल आते हैं। और उस छत्ते को मक्खियों के साथ मिल कर उन्हों के से काम करने लगते हैं ॥ नब छत्ते में मक्खियां बहुत बढ़ जाती हैं। आपस में लड़ती हैं ॥ कुछ निकल कर दूसरी जगह चली जाती हैं। और जुदा कत्ता बना लेती हैं। पर उन के साथ एक रानी
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