Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहला हिस्सा 1 से कभी दिखलायी नहीं दे सकते हैं । इन के न फेफड़ा होता है न गलफड़ा बदन में छोटे छोटे छेद रहते हैं । उन्हीं से सांम लेते हैं | दूसरी किस्मों में किसी के दो से ज़ियादा आंखें नहीं पर इन बे हड्डी वालों में किसी किसी के इतनी होती हैं कि जिन का गिनना मुश्किल फ़ाइदा यह कि वो बिना सिर फेरे चारों तरफ़ देख कर अपने दुश्मन से ख़बदार हो जाते हैं । देखा मक्खी के दोही आंखें दिखलायी देती हैं लेकिन खर्दबन शीशे से एक एक आंख के अंदर जाली की तरह चार चार हज़ार से ऊपर आंखों के निशान गिने जा सकते हैं ॥ निदान इस हिसाब से मक्खी के आठ हजार और मकड़ी के आठ आंखें होती हैं । उन में से दो सिर पर दो उन के पीछे दो आंखों की मामूली जगह और दो उन से ज़रा ऊपर रहती हैं | इन की जीभ बहुत छोटी पर डौल उस का हाथी की सूंड सा मच्छर कुटकी उस से आदमी के बदन में छेद करके उस का लोहू चमती हैं । और शहद की मक्खियां फूलों का रस पीतो हें ॥ उन के छोटे छोटे पर खुर्दबीन शीशे से अजब तमाशे दिखलाते हैं । एक एक इंच लंबी और उतनी ही चौड़ी जगह में लाख लाख दीलियां ऐसे तितलियों के बहुत पर देखने में आते हैं । और फिर इतने छोटे परों से इतना जल्द उड़ते हैं । कि यही मक्खी जितना एक घंटे में उड़ती है उस के तीस मील होते हैं ॥ पांव भी इन के बहुत होते हैं छ से कम तो किसी के नहीं रहते हैं । 1 १६ ८. For Private and Personal Use Only शहद के छत्ते में जो मक्खियां बनाती है । उस सब के बनाने वाले की कुछ जुदा ही हिकमतें दिखायी देती हैं | उस में तीन तरह की मक्वियां होती हैं । एक तो सब से बड़ी रानो मक्वो दूसरी दो हजार नर मक्खियां जिन को काम कुछ

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