Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्याकुर, के गर्ग को पशम कहते हैं और उस के सत से जो शाल दुशाले समाल वगैरः बने जाते हैं पश्मोना कहलाते हैं ॥ भेड़ो की ऊन मे यह बकरी के रोएं बहुत नर्म और गर्म होते हैं और दामों में भी बहुत महंगे मिलते हैं। कश्मीर में पांच पांच हज़ार तक के एक एक दुशाले तय्यार होते हैं । इन जानवरों के चमड़े से संदक पिटारे मढ़े जाते हैं बटुए परतले जूते दस्ताने बनाते हैं। किताब को जिल्द बंधती हैं । बहुत किस्म की चीजें तय्यार होती हैं ॥ अक्सर जानवरों के सींग और हाथी के दांत को कंघी डिबिया कलमदान चाकू के दस्ते तलवार के क़बजे बढ़िया बढ़िया चीजें बनती हैं हिमालय के बर्फी पहाड़ों में सुरागाय को दुम का चमर होता है। और अक्सर जानवरों की चर्बी से बत्ती बनाने का गाडी जंगने का और भो बहुत तरह का काम निकलता है। पखेरु . जिन के पंख यानी पर होते हैं। वह पखेरु कहलाते हैं। जिस तरह चरने वाले को चरंद कहते हैं । उस तरह उड़ने वाले को परंद भी कहते हैं ॥ निदान पखेरू ज़मीन पर और पानी में रहते हैं। उस सिरजनहार करतार ने इन का बदन ऐसा हलका बनाया है कि हवा पर भी ठहर सकते हैं । उन के पंख जो पीछे को मुड़े रहते हैं। उस से उन को यह फाइदा है कि उड़ने में हवा से नहीं रुकते हैं । दोनों डैनों से उन को हवा पर ठहरने का सहारा मिलता है। और दम के ज़ोर से चाहे जिधर मुड़ जाने का जे से पलवार से मांझी नाव का मोड़ लेता है । पखेरुओं के दांत नहीं होते चोंच से तोड़ कर दाना खाते हैं। और जो समचे दाने निगलते हैं वो उनके पेट में पहले एक थेली में नर्म हो लेते हैं तब मिदे में जाते हैं। For Private and Personal Use Only

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