Book Title: Vidyankur
Author(s): Raja Shivprasad
Publisher: Raja Shivprasad

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहला हिस्सा सकते । और गांव और शहर नहीं बसा सकते रहने के लिये घर भी नहीं बनाते हैं । जंगल पहाड़ और समुद्र के उजाड़ टापुत्रों में जानवरों के चमड़े और दरख्तों की छाल और घास फूस से छा छू कर कुछ झोंपड़े से बना लेते हैं या पहाड़ों की खाह और मांदों में अपने दिन काटते हैं । उन में हाकिम या सर्दार कोई नहीं होता । जो जिस का जी चाहा उस ने वह किया ॥ प० -- For Private and Personal Use Only अम चरवाहे एक तरह के ग्वाले गड़रिये घोसी होते हैं । मवेशी पालते हैं । वही उन का धन दौलत है एक जगह ठहर कर नहीं बसते जहां अपने मवेशियों को चराई का सुभीता देखा। वहीं तंबू तानकर या छप्पर छा कर देग ना किया ॥ जब घराई हो चुकी दूसरी जगह चल दिये। और इसी तरह कुछ दिन वहां ना ठहरे ।। जो हो जंगलियों से इन में किसी क़दर तमीज़ और समझ होती है । और कुछ आदमिय्यत भी पायी जाती है । क्योंकि जानवरों के शिकार से गाय भैंस भेड़ी बकरी घोड़ा ऊंट पालने में ज़ियादा समझ बूझ और सोच बिचार दकीर होता है इस क़िस्म के चरवाहे तातार और अरब में बहुत हैं । वहां अक्सर इसी क़िसम के आदमी देखने में आते हैं ॥ तमोजदार यानी सीखे सिखाये लिखाये पढ़ाये सिर्फ मवेशी ही नहीं पालते बल्कि खेती बारी भी करते हैं । और नये र इल्म सीखकर तरह २ की चीजें अपने आराम और फ़ाइदे के लिये बनाते हैं । इन लोगों के इकट्ठा रहने से गांव कस्बे और शहर बस जाते हैं । और धन दौलत लियाकत हुकूमत और काम पेशे से उन के दर्जे भी ठहर जाते हैं । कोई महाजन सेठ सौदागर साहूकार कोई बनिया बढ़ई लुहार दुकानदार को

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