Book Title: Vibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Author(s): Nina Jain
Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri

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Page 11
________________ आशीर्वचन : ___ * जयन्तु वीतरागा: * * श्री आत्म-वल्लभ-समुद्र-इन्द्रदिन्न सद्गुरूभ्यो नम: * विजय नित्यनन्द सूरि बीकानेर सत्य, करुणा, त्याग, परोपकार, नैतिकता इत्यादि कुछ ऐसे सात्विक गुण हैं । जो कि प्रत्येक धार्मिक परम्परा में आदरणीय तथा आचरणीय रहे हैं। धर्म के साश्वत आधार-ही ये सद्गुण हैं, इसीलिए सन्त समाज भी इन्हीं सद्गुणों की उपासना के उपदेश देते हैं । किन्तु सृष्टि के प्राणी मात्र को अपने साथ जोड़ने के लिए अहिंसा की प्राथमिक भूमिका रही है। अहिंसक व्यक्ति यही विचार कर हिंसा से दूर रहता है कि सेजै मुझे मारना, पीटना, ताड़ना, वध करना, कटु बोलना, अप्रिय लगता है वैसे ही प्रत्येक प्राणी को अहितकर लगता है आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् .भिन्न-भिन्न परम्पराओं और शास्त्रों में अहिंसा की परिभाषाएँ एवं स्वरूप अलग-अलग होते हुए भी उद्देश्य एक ही है तदपि जितना अहिंसा का विराद विवेचन जैन धर्म के ग्रन्थों में मिलता है उतना सम्भवतः अन्यत्र नहीं । आज जहाँ मानव अपने स्वार्थ के लिए मूक जीवों का वध कर रहा है । जहाँ आतंकवाद का कट्टर जन-जन पर बरप रहा है ऐसे युग में अहिंसा का अनिवार्यता और इसके प्रचार को अत्यन्त आवश्यकता है। ... "विभिन्न धर्मशास्त्रों में अहिसा का स्वरूप' नामक पुस्तक इसी दिशा में एक सफल प्रयास है। समस्त धर्म ग्रन्थों में अहिंसा सम्बन्धि विचारों को स्वयं में समाहित करने वाला यह धर्म ग्रन्थ एक ओर अहिंसा जैसे दुरुह विषय पर धार्मिक एकता को प्रमाणित करता है तो दूसरी ओर यह कि धर्म कभी हिंसा नहीं सिखाता । लेखिका का इस ग्रन्थ में धर्म ग्रन्थों का विशाल अध्ययन, मनन एवं चिन्तन परिलक्षित होता है । यह ग्रन्थ साहित्य की अमूल्य निधि बनेगा ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। पाठक वर्ग प्रस्तुत पुस्तक का स्वाध्याय कर अहिंसा को समझने का प्रयास करेगा एवं अपने जीवन को अहिंसात्मक बनाएगा, यही शुभभावना ! -नित्यानन्द सूरि का धर्मलाभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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