Book Title: Vibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup Author(s): Nina Jain Publisher: Kashiram Saraf Shivpuri View full book textPage 9
________________ प्रकाशकीय वक्तव्य प्रस्तुत पुस्तक शोध संस्थान का द्वितीय प्रकाशन है। यह पुस्तक भारतीय संस्कृति की दृष्टि से लिखवाकर प्रकाशित की जा रही है। पस्तक प्रकाशित करने का विशेष प्रयोजन वर्तमान परिस्थितियां हैं, क्योंकि इस समय जन-साधारण के साथ-साथ शासक वर्ग का रुझान भी अहिंसा वत्ति की ओर से हटता जा रहा है। जगह-जगह कत्लखाने खुलते जा रहे हैं, उसके लिये दलील यह दी जाती है कि अनुपयोगी पशुओं के लिये चरागाह की समस्या पैदा होगी। यदि इस विचारधारा को सही मान लिया जाये तो जो नवयुवक वृद्ध मां-बाप को अनुपयोगी समझकर घर से निष्कासित कर देते हैं, उचित ही मानना चाहिये । इसीलिये मैं आशा करता हूँ कि सुविज्ञ पाठकों को यह पुस्तक पसन्द आयेगी। पिछले कुछ वर्षों से ही इस पुस्तकालय का सदुपयोग शोध-कर्ताओं ने किया है जिनमें सर्वप्रथम स्व. डॉ. सीतारामजी दांतरे का नाम आता है। द्वितीय, विद्वान डॉ. एम. एल. शर्मा, प्राचार्य शासकीय कन्या महाविद्यालय शिवपुरी ने किया। तत्पश्चात क्रमश: पी.एच.डी. हेतु डॉ श्यामसुन्दर शर्मा, व्याख्याता, व्ही. टी. पी. उ. मा. वि. शिवपुरी, डॉ. (कु.) नीना जैन, व्याख्याता, व्ही. टी. पी उ. मा. वि. शिवपुरी, डॉ. (कु.) मीरा जैन, ग्वालियर, श्रीमती मीना श्रीवास्तव, डिग्री कॉलेज मोहना, ने किया। मेरे पहले प्रकाशन "मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति पर जैन सन्तों (आचार्यों एवं मुनियों) का प्रभाव" पर कुछ पत्र-पत्रिकाएं तथा विद्वानों के अभिप्राय इस पस्तक के अन्त में दिये जा रहे हैं। बम्बई रहकर आचार्य श्री विजयेन्द्र सरिजी द्वारा रचित ग्रन्थों एवं पत्रों का प्रकाशन किया। आज भी देश-विदेश के विद्वानों के सैकड़ों अप्रकाशित पत्र मेरे संग्रहालय में मौजूद हैं जिनमें आचार्य श्री द्वारा लिखित तीर्थंकर महावीर का अंग्रेजी अनुवाद भी शामिल है। पुस्तक के प्रकाशन में आदरणीय श्री कमलचन्दजी गुगलिया का सहयोग मिला इस हेतु उन्हें धन्यवाद ! -काशीनाथ सराक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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