Book Title: Vedang Prakash Author(s): Dayanand Sarasvati Swami Publisher: Dayanand Sarasvati Swami View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥सामासिकः॥ सह सुपा ॥ २ ॥ १ ॥ ४ ॥ सह ग्रहणं योगविभागार्थम् । सह सुप् समस्यते केन सह । समर्थेन । अनुव्यचलत् । अनुविशत् । ततः सुपा च सह सुप् समस्यते । उदाहरणम् । अजाकृपाणीयम् । पुनरुत्स्यूतम् । वासो देयं न पुनर्निष्कृतोरथः । अधिकारश्च लक्षणं च यस्य समासस्यान्यल्लक्षणं नास्ति इदं तस्य लक्षणं भविष्यति । ऐसा जानना कि जिसका लक्षण कोई सूत्र न होवे उस समास की सिद्धि करनेवाला यह सूत्र है । यहां से भागे तीन पद का अधिकार है । सो ये हैं :-सह । सुप् और पासु ॥ वा०-इवेन सह समासो विभक्तथलोपः पूर्वपदप्रकृतिस्वरत्वञ्च वक्तव्यम् ॥ जैसे-वाससी इव । कन्ये इव ॥ भव्ययीभावः ॥ २ । १ । ५ ॥ यहां से आगे जो समास कहेंगे उस की भव्यय संज्ञा जानना चाहिये । पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावः । अव्ययीभावसमास में पूर्वपद का अर्थ प्रधान होता है ॥ . अव्ययं विभक्तिसमीपसमृद्धिव्यद्धयर्थाभावाऽत्ययाऽसम्प्रतिशन्दप्रादुर्भावपश्चाद्यथाऽऽनुपूर्व्ययोगपद्यसादृश्यसंपत्तिसाकल्यान्तवच नेषु ।। २ । १।६॥ विभक्ति से लेके अन्त शब्द पर्यन्त १६ ( सोलह ) अर्थ हैं उन में वर्तमान जो अव्यय हैं सो सुबन्त के साथ समास पावें वह अव्ययीभाव संज्ञक हो । “विभक्तिवचने तावत्" वचन शब्द का विभक्ति आदि सब के साथ योग जानना (विभक्ति ) स्त्रीष्वविकृत्य कथा प्रवर्तते । मधिस्त्रि * अधिकुमारि । स्वो नपुंसके प्रातिपदिकस्य ॥ १।२ । ४७ ॥ जो नपुंसक लिङ्ग अर्थ में वर्तमान प्रातिपदिक हो तो उसके अच् को ह्रस्व हो । अतिरि कुलम् । अधिस्त्रि इत्यादि । नपुंसक इति किम् । ग्रामणीः। सेनानीः । प्रातिपदिकस्येति किमर्थम् । काण्डे तिष्ठतः । कुड्ये तिष्ठतः ॥ ___* "अव्ययीभावश्च" इस सूत्र से यहां नपुंसक लिङ्ग होता है। और "अव्ययादाप्सुपः " इस सूत्र से यहां सुप् का लुक होता है । For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 77