Book Title: Vedang Prakash Author(s): Dayanand Sarasvati Swami Publisher: Dayanand Sarasvati Swami View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org || सामासिकः ॥ एकपद का अनेक पदों के साथ सम्बन्ध होने को व्यपेक्षा कहते हैं । सो प्रत्ययविधान में और पराङ्गवद्भाव में भी जाननी चाहिये । समास का प्रयोजन यह है कि अनेक पदों का एक पद अनेक विभक्तियों को एक विभक्ति और अनेक स्वरों का एक स्वर होना । “वृत्तिस्तर्हि कस्मान्न भवति महत्कष्टं श्रित इति । सविशेषणानां वृत्तिर्न वृत्तस्य वा विशेषणन्न प्रयुज्यत इति" यहां महत् शब्द विशेषण और कष्ट विशेष्य है । फिर विशेषण सहित जो कष्ट है सो श्रित के साथ समास को प्राप्त नहीं होता और जो समास भी कर लें तो भी कष्ट का श्रित के साथ विशेषण का योग नहीं हो सकता । यहां वृत्ति नाम समास का है । इस के उदाहरण तथा प्रत्युदाहरण इस सूत्र आगे कहेंगे || Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुबामन्त्रिते पराङ्गवत् स्वरे ॥ २ । १ । २ ॥ जो श्रामन्त्रित पद परे हो तो पूर्व सुबन्त को पराङ्गवद्भाव स्वरविधि करने में होवे । अर्थात् आमन्त्रित पद का जो स्वर है वही पूर्व सुचन्त का स्वर हो जावे । संबोधन पद के परे सुबन्त पूर्व पद के स्थान में पराङ्गवत् अर्थात् संबोधन पद का जो स्वर है वही स्वर हो जाता है । कुण्डेनाटन् | परशुना वृश्चन् । मद्राणां राजन् । कश्मीराणां राजन् । मगधानां राजन् । सुबिति किम् । पीड्ये पीड्यमान | आमन्त्रित इति किम् । गेहे गार्ग्यः । परग्रहणं किम् । पूर्वस्य माभूत् । देवदत्तस्य कुण्डेनाटन् । स्वर इति किम् । कूपे सिञ्चन् । चर्मे नमन् ॥ वा० - षत्वणत्वे प्रति पराङ्गवन्न भवति । वा० - सुबन्तस्य पराङ्गवद्भावे समानाधिकरणस्योपसंख्यानमनन्तरत्वात् ॥ जैसे - तीक्ष्णया सूच्या सीव्यन् । तीक्ष्णेन परशुना वृश्चन् ॥ वा० - अव्ययानां प्रतिषेधो वक्तव्यः ॥ उच्चैरधीयान । नीचैरधीयान ॥ प्राकू कडारात् समासः ॥ २ । १ । ३॥ जो इस सूत्र से आगे ( कडाराः कर्मधारये ) यह सूत्र है वहां तक समास का अधिकार जानना योग्य है | For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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