Book Title: Vedang Prakash Author(s): Dayanand Sarasvati Swami Publisher: Dayanand Sarasvati Swami View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ओ३म् ।। अथ सामासिकः ॥ अथ सामासिकः* प्रारभ्यते।तत्र समासाउचत्वारः। प्रथमोऽव्ययीभावः । द्वितीयस्तत्पुरुषः । तृतीयोयहुब्रीहिः । चतुर्थश्च द्वन्दः ॥ समर्थः पदविधिः ।२।१।१॥ समर्थपदयोरयं घिधिशब्देन मर्वविभक्तयन्तः समासः । समर्थस्य विधिः। समर्थविधिः । समर्थयोविधिः । समर्थविधिः ।समर्थानां विधिः। समर्थविधिः। समर्थादू विधिः। समर्थविधिः। समर्थे विधिः। समर्थविधिः । पदस्य विधिः । पदविधिः । पदयोर्विधिः । पदविधिः । पदानां विधिः । पदविधिः । पदाद् विधिः । पदविधिः । पदे विधिः । पदविधिः । समर्थविधिश्च समर्थविधिश्च समर्थविधिश्च समर्थविधिश्च समर्थविधयः । पदविधिश्च पदविधिश्च पदविधिश्च पदविधिश्च पदविधयः । समर्थविधयश्च पदविधयश्च । समर्थ पदविधिः । पूर्वः समास उत्तरपदलोपी यादृच्छिकी च विभक्तिः । सामर्थ्य द्विविधम् । एकार्थीभावः व्यपेक्षा च ॥ यह महाभाष्य का वचन है । जिस में भिन्न २ पदों का एकपद अनेक स्वरों का एकस्वर, अनेक विभक्तियों की एक विभक्ति हो जाती है उस को एकार्थीभाव और * समासानां व्याख्यानो ग्रन्थः सामासिकः । जिस ग्रन्थ में समासों की व्याख्या हो उस का नाम सामासिक है। ... + यह सूत्र एक पद और अनेक पदों के सम्बन्ध में साधुत्व विधायक है । जो यह आगे ब्याख्या लिखी जानी है वह सब महाभाष्य की है। For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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