Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 713
________________ णव-णातिय णव [नब] ओ० १,५,८,७१. रा०६१. जी०३,२७४,५६७ णवंग [नवाङ्ग] रा० ८०६,८१० णवण वमिया [नवनवकिका] ओ० २४ णवणीइयागुम्म नवनीतिकागुल्म] जी० ३१५८० णवणीत [नवनीत ] जी० २८४,२९७ ण वणीय [नवनीत] ओ० १३,६२,६३. रा० ३१, ____३७,१८५,२४५. जी० ३।४०७ णवनीय [नवनीत ] जी० ३।३११ णवतय [नवत्वक् ] रा० ३७ णवमिया [नवमिका] जी० ३।६२१ णवय [नवक] रा० ७५६,७६१ णवरं [दे०] जी० ११५६ णवरि [दे०] जी० ११६६ णवविध [नव विध] जी० ८।१,५; ६।२२१,२३२ णह निख] ओ० ६२. रा० ८,१०,१२,१४,१८, ४६,७२,७४,११८,१५०,२७६,६५५,६८१, ६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४,७२३. जी० ३१५९७ णाइ [ज्ञाति] ओ० १५०. रा० ७५१,७७४,८०२, ८११ णाइय नादित ] ओ० ६,६७. रा० १३,५६,५८. जी० ३।२७५,२८६,४५७.५५७ णाऊण [ज्ञात्वा] ओ० २३ । णाग [ नाग] ओ० ६६,१२०,१६२. रा० ६६८, __७५२,७७१,७८६. जी०३।३३५,५९६,७३३, ८८५,६४४,६४५,९४७ णागग्गह नागग्रह ] जी० ३१६२८ णागदंत [नागदन्त] रा० १३२,२४०. जी० ३।३०२,३१७,४०२ णागवंतग [ नागदन्तक] जी० ३।३०२,३१७,३२६, ३९७ णागदंतय [नागदन्तक] रा० १३२,१५३,२३५, २३६. जी० ३।३०२,३२६,३५५ णागदीव नागद्वीप] जी० ३१९४४,६४५ णागद्दार [नागद्वार] जी० ३।८८५ णागधर [ नागधर] ओ०६६ णागपइ [नागपति ] ओ० ४८ णागफड [नागस्फटा] ओ० ४८ णागमह [नागमह] जी० ३।६१५ णागराय | नागराज] जी० ३।७३४ से ७३६, ७४०,७४२,७४५,७४८ से ७५०,७८१,७८२ णागरुक्ख [नागरूक्ष] जी० १७१ णागलया [ नागलता] ओ०११. जी० ३१५८४ णागलयामंडवग [नागलतामण्डपक] रा० १८४. जी० ३।२६६ णागलयामंडवय [नागलतामण्डपक] रा० १८५ णाङग [नाटक ] रा० ६८५ णाण [ज्ञान ] ओ० ४६,५४,१५३,१६५,१६६, १८३,१८४,१६५।११. रा० २६२,६८६,७३३, ७३६,७४६,७७१,८१४. जी. ३११५२,४५७, ६१७ णाणत्त [नानात्व] जी० १।११६ ; ३।१६१,१६५, २१८ णाणविणय [ज्ञानविनय ] ओ० ४० णाणसंपण्ण [ज्ञानसम्पन्न] ओ० २५ णाणा [नाना] ओ० ५०,६३,७०. रा० १६,२०, ३२,३७,४०,१३०,१३३,१३५,१३६,१३८, १७५,१६०,२४५,८०४. जी० ३१७८,२६४, २६५.२८६ से २८८,३००,३०२,३०५, ३०६,३११,३२२,३७२,४३५,६५४,१०७१, १०६१ णाणावरणिज्ज [ज्ञानावरणीय ] ओ० ४४ णाणाविह नानाविध] ओ०६ से ८,१०,४६,५५, १०७,१३०. रा० २४,३२,१२८,१३३,१५१, १५२,१७१,२८१. जी० ३।२७५,२७७,३०३, ३२४,३२५,३५३,४४७ णाणि | जानिन् ] जी० ११८७,६६,११६,१३३, १३६; ३।१०४,१५२,११०७,११०८६।३०, णातिय [नादित] रा० २६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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