Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 843
________________ ७६६ सुरभिगंध-सुसिर सुरभिगंध [सुरभिगन्ध] रा० ६,१२ सवण्णरुप्पामय [सुवर्णरूप्यमय] रा० १६,१५३, सुरम्म [सुरम्य ] ओ० १,६ से ८,१०,१३. १६०,२३५,२३६,२४०,२७५,२८०. रा० २२,३७,२४५. जी०३।२७५,२७६, जी० ३।२६४,२८७,३२६,३६७,३६८,४४५ ३११,३८६,४०७,५८१,५८५ सवण्णागर [सुवर्णाकर रा० ७७४. जी० ३.११८ सुरवर [सुरवर] रा० ८,६,१२ सुवयण [सुवचन] ओ० ५२. रा० ६६७,६८७ सुरस [सुरस] जी० ३।६८०,९८६ सुवासित [सुवासित] जी० ३८७८ सुरहि [सुरभि ] ओ०६३. जी० ३।६७२ सुविणीय [सुविनीत] रा० ७६ से ८१ सुरा [सुरा] जी० ३१५८६ सुविभत्त [सुविभक्त] ओ० १,५,८,१०,१६. सुरूव [सुरूप] ओ०१५,४७ से ५१,१४३. रा० ३२,१४५. जी० ३।२६८,२७४,३७२, रा० ५३,६७२,६७३,८०१. जी० ३।२६०, ५६६,५६७ ६७८,६८४ सुविरइय [सुविरचित] रा० ३७,२४५. सुरुवग [सुरूपक] जी० ३१५९६ जी० ३।४०७,५६६,५६७ सुविरचित [सुविरचित] जी० ३१३११ सुरूवत्त [सुरूपत्व] जी० ३१९८४ सुलभबोहिय [सुलभबोधिक] रा० ६२ सुविहि सुविधि] जी० ३।५६४ सुललिय [सुललित] रा० १७३. जी० ३।२८५ सुव्वत्त [सुव्यक्त] ओ० ७१. रा० ६१ सुवण्ण [सुवर्ण] ओ० २३,५२,६३. रा० ४०,१३२, सुव्वय [सुव्रत] ओ० १६१,१६३ १७४,२८१,६८७ से ६८६. जी० ३।२६५, सुसंपउत्त [सुसम्प्रयुक्त] ओ० ४६,६४. रा० ७६, २८६,३०२,३१३,४४७,६०८,८४०,८८५, १७३,६८१. जी० ३।२८५,५८८ ११२२ सुसंपग्गहित [सुसम्प्रगृहीत] जी० ३।२८५,३०२ सुसंपग्गहिय [सुसम्प्रगृहीत] ओ० ६४. रा० १३२, सुवण्ण [सुपर्ण] ओ० ४८,१२०,१६२. रा०६९८, ७५२,७८६. जी० ३।२३२ सुसंपरिगहित [सुसम्परिगृहीत] जी० ३।२८५ सुवण्णकूला [सुवर्णकूला] रा० २७६. जी० ३।४४५ सुसंपरिग्गहिय [सुसम्परिगृहीत] रा० १७३,६८१ सुवण्णजुत्ति [सुवर्णयुक्ति] ओ० १४६. रा० ८०६ सुसंपिणद्ध [सुसंपिनद्ध] रा० १७३,६८१ सुवण्णजूहिया [सुवर्णयूथिका] रा० २८. सुसंभास [सुसंभाष] ओ० ४६ ___ जी० ३।२८१ सुसंवुय [सुसंवृत] ओ० ६३ सुवण्णद्दार [सुपर्णद्वार] जी० ३१८८५ सुसंहय [सुसंहत] ओ० १६ सवण्णपाग [सुवर्णपाक] ओ० १४६. रा० ८०६ सुसक्कय [सुसंस्कृत] जी० ३१५६२ सुवण्णमणिमय [सुवर्णमणिमय] रा० २७६,२८०. सुसज्ज [सुसज्ज] ओ० ५७. रा० ५३ जी० ३।४४५ सुसमाहिय [सुसमाहित] ओ० ३७ सुवण्णरुप्पमणिमय [सुवर्णरूप्यमणिमय ] रा० २७६, सुसवण [सुश्रवण] जी० ३।५९६ २८०. जी० ३।४४५ सुसव्व [सुपर्व] रा० १५२. जी० ३१३२५ सुवण्णरुप्पमय [सुवर्णरूप्यमणिमय] रा० १७५. सुसामण्णरय [सुश्रामण्यरत ] ओ० २५,१६४ जी० ३।४०२,६०२ सुसाहत [सुसंहत] जी० ३।५९६ सवण्णरुप्पामणिमय [सुवर्णरूप्यमणिमय] सुसिणिद्ध [सुस्निग्ध] जी० ३।५९७ जी०-३२४४५ सुसिर [शुषिर] रा० ११४,२८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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