Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 817
________________ ७४० वेउब्वियसमुग्घाय-वेराणबंध १४६ वेउब्वियसमुग्धाय [वैक्रियस मुद्घात] रा० १०,१२, वेदिया [वेदिका | जी० ३।२६६,२८८,३००,३७२, १८,६५,२७६. जी० ११८२,३३१०८,४४५ ७६५,७६६ से ७७५,७७८ वेउव्वियसरीर वैक्रियशरीर ] ओ० १७६. वेदियापुडंतर | वेदिकापुटान्तर | जी० ३।२६६ जी० ६।१७० वेदियाबाहा | वेदिकाबाहु ] जी० ३१२६६ वेउब्वियसरीरि [वैक्रियशरीरिन्] जी० ६ १७०, । वेदेमाण | वेदयत् | ओ० ८६. रा० ७५१ १७७,१८१ वेमाणिणी [वैमानिकी] जी० २७१,७२,१४८, वेंट [वृन्त] जी० ३।३८७,६७२ वेग [ वेग] ओ० ४६,५७ वेमाणिय [वैमानिक ओ० ५०. रा० ७,११,१५ वेच्च | व्युत, व्यूत रा० ३७,२४५. जी. ३१३११, से १७,५५,५६,५८,५६,१८५,१८७,२७६, ४०७ २८६,२६१,६५७. जी० १११३५, २।१५,१६, वेजयंत [वैजयन्त] ओ० १६२. जी० ३.१८१, ४५,४६,७१,७२,९५,९६,१४८,१४६; ३।२३०, २६६,५६६,५६७,७०७,७११,७६६,८१३, ६१७,१०३८ ८२४,९४१ वेय [वेद] ओ० २५. रा० ६८६,७७१. वेजयंती [वैजयन्ती] ओ० ६४. रा० ५०,५२,५६, जी० १११४,११६२।१५१:६।६६ १३७,२३१,२४७. जी० ३३०७,३६३,११६, वेय वि. एज्-वेय इ. रा० ७७१.-वेयंति. १०२६ ___जी० ३।७२६ वेयंत [व्ये जमान] रा० ७७१ वेडंतिय (पाय) [दे० ओ० १०५,१२८ वेडंतिय (बंधण) दे० ] ओ० १०६,१२६ वेषण | वेतन ] रा० ७८७,७८८ वेढ [ वेष्ट ] रा० ७६७ वेयण [दे० विक्रय ] रा० ७७४ वेढणग | वेष्टनक] जी० ३.५६३ वेयणा | वेदना] ओ० १७,४६,७१,७४.१६५. वेढित्ता विष्टित्वा ] रा० ७६७ रा० ७५१,७६५. जी० ११८६; ३७७,११०, १२७१४,५,१२८।१,१२६७ वेढिम | वेष्टिम] ओ० १०६,१३२. रा० २८५. वेयणासमुग्धाय वेदनाममुद्घात ] जी० १२३,८२. जी० ३।४५१,५६१ वेणतिया बनयिकी | रा० ६७५ वेयणिज्ज [ वेदनीय ] ओ०८६,१७१ वेणु [वेणु] जी० ३१५८८ वेयणीय [वेदनीय] ओ० ४४ वेणुदेव [वेणुदेव जी० ३।२५० वेयद्दिय [विदिक ] ओ० २ वेणसलाइपा [ वेणुशलाकिकी] रा०१२ वेयालिया [वेवालिकी रा० १७३. वेव | वेद] ओ० ६७. जी० २।१५१ । जी० ३.२८५ /वेद | वेदय]-- वेदेति. जी० ३१११२ वेयावच्च [वैयावृत्य] ओ० ३८,४१ वेदणा [वेदना] जी० ३।१११ से ११५,११७, वेर [वैर] जी० ३।६२७ १२८ वेरग [वैराग्य] ओ० ४६,७४१५ वेदणासमुग्धात [ वेदनासमुद्घात ] जी० ३।१११२, वेरमण [विरमण ] ओ० ७६,७७,७६ से ८१, १११३ १२०,१४०,१५७. रा० ६६३,६९८,७१७, वेदणासमुग्धाय वेदनासमुद्घात] जी० ३।१०८, ७५२,७८७,७८६ वेराणुबंध | वैराणुबन्ध] जी० ३।६१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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