Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 832
________________ सरीरस्थ-सव्वभासाणुगामि १०६१,१०६३,१०६७,१०६८ सरीरत्य ]शरीरस्थ ] ओ० १७४ सरीरपज्जत्ति [शरीरपर्याप्ति] रा० २७४,७६७.. जी० १२२६; ३।४४० सरीरय [शरीरक] जी० ११६४; ३।६२,६५,९६, सरीरविउस्सग्ग [शरीरव्युत्सर्ग] ओ० ४४ सरीरि [शरीरिन] जी० ६।६६ सरोसिव [सरीसृप] जी० ३१८८ सलिल सलिल] ओ० २७,४६. रा० १७४,२८८. जी० ३.११८,११९,२८६,४५४ सलिला [सलिला] रा० २७६. जी० ३।४४५ सलील [सलील] रा० २५५,२५६. जी० ३।४१६, ४१७ सलेस [सलेश्य] जी० ६२६ सलोद्द [सलोप्त्र] रा० ७५४,७५६,७६४ सल्ल [शल्य] ओ० ७२ सल्लई [सल्लकी] जी० ३।८७२ सल्ली [दे०] जी० २६ सवण [श्रवण] ओ० १६. रा० २५४. जी० ३।४१५,५६६,५९७ सवणया [श्रवणता] ओ० २०,५२,५३. रा०६८७, ७१३, ७१६,७५० से ७५३ सवियारि [सविचारिन्] ओ० ४३ सविसय [सविषय] जी० ११४७ सविवेस [सविशेष] जी० ३।१०१०,१०१४ सवेदग सिवेदक] जी० ६२२,२५,२७ सवेदय [सवेदक ] जी० ६.२३,२८,३२ सव्व [सर्व] ओ० २७. रा० ६. जी० ११५० सवओ सर्वतस् ] ओ० ३,६,२७,७६,११७. रा० ६,१२,३०,४०,६३,६५,१२७,१३२, १३५,१५४,१७३,१८६,२०१,२०५ से २०७, २३६,२६३,२८१,६७०,८१३. जी० ३१२१७, ३८८,८१२,८२३,८५० सव्वओभद्द [सर्वतोभद्र] ओ० ५१ सवओभद्दपडिमा [सर्वतोभद्रप्रतिमा ] ओ० २४ सव्वंग [सर्वाङ्ग] ओ० १५. रा० ६७२,६७३, ८०१. जी० ३।५६६,५६७ सव्वकामगुणिय [सर्वकामगुणित ] ओ० १९५॥१८ सव्वकाल [सर्वकाल ] ओ० १६५।१६ सध्वक्खरसण्णिवाइ [सर्वाक्षरसन्निपातिन् ] ओ० २६ सव्वग्ग [सर्वाग्र] रा० २२७. जी० ३।३८६,६४२, ६५३,६७२,६७६,७६४,७६५ सव्वट्ट [सर्वार्थ] जी० ३।६३४ सव्वट्ठसिद्ध [सर्वार्थसिद्ध] ओ० १६७,१९२. जी० २१७८,८१, ३३१८४,१६२ सव्वट्ठसिद्धग [सर्वार्थसिद्धक] जी० २।८५,९६; ३।२३१ सवण्णु [सर्वज्ञ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८,२६२. जी० ३।४५७ सव्वतो [ सर्वतस ] रा० १२,४५,१६१,२०८,७५५, ७६४,७६५,७७२,७७४. जी० ३।४६,५०, २६०,२६२,२६५,२८३,२८५.३०२,३०५, ३१३,३२७,३५२,३६२,३६८ से ३७१,३६०, ३६८,४४७,५६१,६३६,६५२,६५८,६६८, ६७८,६७६,६८१,६८६,७०४,७०६,७३६, ७४१,७५४,७७०,७७२,७६६,७६८,८१०, ८२१,८३३,८३६,८४५.८४८,८५९,८६२, ८६५,८६८,८७१,८७४,८७७,८८०,६२५ सव्वत्ता [सर्वता] ओ० ७६ सव्वत्थ [सर्वार्थ ] ओ० ४० सव्वत्य [सर्वत्र] जी० २१८५ सव्वदरिसि [सर्वशिन् ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८.२६२. जी० ३१४५७ सव्वद्धपिडिय [सर्वाध्वपिण्डित] ओ० १६५।१४, सम्वद्धा [सर्वाध्व] जी० ३।१६३,१६४ सव्वपाणभूयजीवसत्तसुहावहा [सर्वप्राणभूतजीव सत्त्वसुखावहा] ओ० १६३ सम्वभाव [सर्वभाव] ओ० १६५।१२ सव्वभासाणुगामि [सर्वभाषानुगामिन्] ओ० २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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