Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
सम्मदिट्ठि-सयवत्त
सम्मदिट्टि [सम्यग्दृष्टि] रा० ६२. जी० ११२८,
८६; ३।१०३,१५१,११०५,११०६, ६।६७,
६८,७१,७४ सम्मय [सम्मत] रा०७५० से ७५३ सम्माण [सम्मान] ओ० ४०,५२. रा० १६,६८७,
६८६ सम्माण [सं--मानय ] -सम्माणिस्संति. रा० ७०४---सम्माणेइ. ओ० २१. ७०६-सम्मा
ज्जा. रा०७७६-सम्माणेति. रा०६८४ सम्माणमि. रा०५८---सम्माणे मो. ओ०
५२. रा० १०---सम्माहिति. ओ० १४७ सम्माणणिज्ज [सम्माननीय ] ओ० २. जी०
३।४०२,४४२ सम्माणित्तए [सम्मानयितुम् ] ओ० १३६. रा०
सम्माणेत्ता [सम्मान्य] ओ० २१ सम्मामिच्छदिट्टि [सम्यग्मिथ्यादृष्टि ] जी०
२२८,८६; ३१११०५,११०६ सम्मामिच्छादिट्टि [सम्यमिथ्यादृष्टि] जी०
३।१०३,१५१; ६।६७,७०,७३,७४ सम्मुइ [सम्मति] जी० ३१२३६ सय [शत ] ओ० ६३,६४,६८,७१,११५,११८,
११६,१७०,१६२,१६५।५. रा०१७,१८,३२, ६१,६६,६६ से ७१,१२४,१२७,१२६,१३७, १६२,१७०,१७३,१८६,१८८,२०४ से २०६, २०६,२११,२३३,२५१,२५४,२५८,२६२, २६२,६८१,६८६,७११,७५३. जी० १६४; २२४१,४८,७३,६२,६७,१२५,१२८; ३८२, ६१,१२६१६,१७४,२१७ से २२६,२२६।१,३, ६,२२७,२३७,२४६,२४६,२५५,२५७,२६०, २६२,२६३,३५१,३५८,३६१,३७४,४१६ ४५७,६३२,६४७,६४६,६७४ से ६७६,६८३, ७०३,७०६,७२२,७३६,७५४,८०२,८०६, ८२०,८२३,८३०,८३४,८३७,८३८.६,६,३१, ८३६,८८७,६०८,६१८,६६६,१००३,१००५,
१०१४,१०१६,१०२२,१०४१,१०५२,१०५३, १०५५,१०६५ से १०७०,४११५:५१६,२६;
६६३,१०६,१२३,१२८,१४४ सय [स्वक] ओ० २०,५३. रा० ५४,६७१,६८१,
७१०,७१८,७५०,७७४ सय [शी]-सयंति रा० १८५. जी० ३।२१७ सयंपभा [स्वयंप्रभा] जी० ३।१०७७ सयंबुद्धसिद्ध [स्वयंबुद्धसिद्ध] जी० ११८ सयंभुमहावर [स्वयंभूमहावर] जी० ३।९५१ सयंभुरमण |स्वयंभूरमण] जी० ३।२५६,६४६ से
६५१,६६२,६६४,६६५,६६८ सयंभूवर [स्वयंभूवर] जी० ३।६५१ सयंभूरमण [स्वयंभूरमण] जी० ३।९७१ सयंभूरमणग [स्वयंभूरमणक] जी० ३१७८० सयंसंबुद्ध [स्वयंसंबुद्ध] रा० ८,२९२.
जी० ३।४५७ सयग्धि [शतघ्नि ] ओ०१ सयण [शयन] ओ० १४,१४१,१४६,१५०.
रा० १८५,६७१,६७५,७६६,८१०,८११.
जी० ३।२६७,८५७,११२८,११३० सयण स्विजन] ओ० १५०. रा० ७५१,८०२,
८११ सयणविहि [शयन विधि] ओ० १४६. रा० ८०६ सयणिज्ज [शयनीय] रा०२६१,२७७.
जी० ३।६५०,६८२ सयपत्त [शतपत्र] ओ० १२,१५०, रा० ८११.
जी० ३।११८,११६,२८६ सयपाग [शतपाक] ओ० ६३ सयपोराग [शतपर्वक] जी० ३११११ सयमेव [स्वयंमेव] रा० ६७४,६८०,६६८,७५४,
७६१ सयराइं [सप्तति] जी० ३११००० सयराह [दे०] अकस्मात् ओ० १२२ सयल [शकल] ओ० १६,४७ सयवत्त [शतपत्र] ओ० ४७. रा० १३७,१७४,
१९७,२७६,२८८. जी० ३३३०७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854