Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 834
________________ सहस्सार-सामण्णपरियाग ७५७ सहस्सार [सहस्रार] ओ० ५१,१५७,१६२. जी० २११६,१२३,२६१,६६,१४८,१४६%; ३।१०३८,१०५२,१०६१,१०६६,१०६८, १०७६,१०८३,१०८५,१०८८ सहस्सारग सहस्रारक ] जी० ३१११११ सहा [ सभा] ओ० ३७. जी० ३।४१२ सहिणग [ श्लक्ष्णक] जी० ३१५६५ सहित [सहित ] जी० २।१०५; ३१२८५,९२७ सहिय [संहत] ओ० १६ सहिय सहित] रा० ७५. जी. ३८३८१२५ सही [सखी] जी० ३॥६१३ सहोढ [सहोढ] रा० ७५४,७५६,७६४ साइ [साचि] रा० ६७१ साइज्ज [स्वाद्] - साइजामो. ओ० ११७ साइज्जणया [स्वादन] ओ० ३३ साइज्जित्तए [स्वादयितुम् ] ओ० ११७ साइम [ स्वाद्य] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. रा० ६६८,७०४,७१६,७५२,७६५,७७६, ७८७ से ७८६,७६४,७६६,८०२,८०८ साइरेग [सातिरेक] ओ० २३,१४५,१८८. रा० १७०,२११,२२२,२२७,२५३. जी० २।६३, ३।२५०,३५८,३७४,३७६,३८६, ४१४,६५३,६७५,८८२,८८७,८६४; ६।३४, ८६,६३,१३४,१६०,१६१,१६५ साउ [स्वादु] ओ० ६. जी० ३३२७५ सागर [सागर] ओ० २७,४६,७४१५.६६, १६५।२२. रा० २४,७६५,८१३. जी० ३।२७७,५६६,८३८।२३ सागरनागरपविभत्ति [सागरनागरप्रविभक्ति] रा० ६२ सागरपविभत्ति [सागरप्रविभक्ति] रा० ६२ सागरमह [सागरमह] रा० ६८८,६८६ सागरोवम सागरोपम] ओ० ११४,११७, १४०, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७. रा० २८२. . जी० २९६,१३६,१३८,२।७३,७६,८२, ९३,९७,१०७,१०८,११८,१२५,१२७,१२६, १३६; ३।१६२,१६७,४४८,८४१,१०४६, १०४७,१०४६ से १०५३,१०५५,११३१, ११३७,४।४,६,१५,१६,१६,१०,१६२८, २६; ६१२,११; ७१३,१६, ८।३।६।२ से ४, ३१,३४,६८,७२,८६,६३,१०२,१०६,१२३, १२८,१३२,१३४,१६०,१६१,१६५,१७२, १७६,१८६ से १६१,१६३,१६८,१६६,२०३, २०६,२१०,२१७,२२४,२२८,२३४,२४४, २६०,२६६,२८० सागार [साकार] ओ० १८२,१६।११. जी० ११३२,८७,३।१०६,१५४,१११०; ६।३६,३७ साणुक्कोसिया [सानुक्रोशता] ओ०७३ सातासोक्ख [सातसौख्य] जी० ३११११७ साति [साचि] जी० १२११६ साति [स्वाति] जी० ३३१००७ सातिरेग [सातिरेक] रा० ८०५. जी० ११७४; २।४३,४४,४७,८२,१२५,१२८, ३१२४७, २५६,३८१,६४२,६७२,६७६,६८६,६०७, १०३४,१०३६,११३७, ४१६,१५, ५।१६, २६; ६।११,७१६,८३,६३,३१,६८,७२, १०२,१०६,१२३,१२८,१३२,१६८,१९६, २०६,२१७,२४४,२६०,२८० सादीय [सादिक] ओ० १८३,१८४,१६५. जी० ६।२४,२५,३१,३३,३४,८२,११०,१२५, १६३,१६२,१६५,२०१,२०२,२०५,२०६, २१५.२१६,२२७,२३०,२४०,२४६,२६१, २६५,२७६,२८५ साभाविय [स्वाभाविक रा० २७९,२८०. जी० ३।४४५,४४६ साम [सामन् ] रा० ६७५ सामंत [सामन्त] रा० ७५३ सामण्णपरियाग [श्रामण्यपर्याय ] ओ० ६५,१५५, १५६,१६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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