Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 818
________________ वेरि-सउणिज्झय ७४१ वोज्झ [उह्य] रा० २८५. जी० ३३४५१ वोलट्टमाण [व्यपलोटत् ] जी० ३१७८४,७८७ वोसट्टमाण [विक मत् ] जी० ३१७८४,७८७ वोसिर [वि+उत्- सृज] -वो सिरामि. ओ० ११७. रा० ७६६ व्य [इव] ओ० १६. रा० १३७. जी० ३।३०७ वेरि [वैरिन् ] जी० ३३६१२ वेरिय [वैरिक ] जी० ३।६३१ वेरुलिय [वैडूर्य ] ओ० ६४. रा० १०,१२,१८, ३२,५१,६५,१५४,१५६,१६०,१६५,१७४, २२८,२५६.२७६,२६२. जी० ३७,३३२, ३३३,३४६,३७२,३८७,४१७,४५७,६७२ वेरुलियमणि [बंडूर्यमणि ] जी० ३१२८६,३२७ वेरुलियमय [वैडूर्यमय ] रा० १३०,१५३,२७०. २६२. जी० ३।३२२,४३५ वेरुलियामय [वैडूर्यमय | रा० १६,१३२,१७५, १६०,२३६. जी० ३.२६४,२८७,३००,३०२, ३२६,३९८,४५७,६४३,८७५ वेलंधर | वेलन्धर] जी० ३।७३४ से ७३६,७४०, ७४२,७४५,७४७,७८१,७८२ वेलंब | वेलम्ब ] जी० ३।७२४ वेलंबग [विडम्बक ] ओ० १,२ वेलंबगपेच्छा [विडम्बकप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. ___ जी० ३१६१६ वेलवासि वेलावासिन् ] ओ० ९४ वेला वेला] ओ० ४६. जी० ३।७३२ वेलु [वेणु] रा० ७७ वेस [वेष ] ओ० १५,४६,५३,७०. रा० ७०, १३३,६७२,८०४. जी० ३१३०३,५९७, ११२२ वेसमण [ वैश्रमण] ओ० ६५ वेसमणमह [वैश्रमणमह] रा० ६८८. जी० ३।६१५ वेसाणिय | वैषाणिक ] जी० ३।२१६,२२१ वेसाणियदीव [वषाणिकद्वीप] जी० ३।२२१, स [स] ओ० २,१२,१५,१६,३०,५४,६० से ६५, ७०,६७,१७०,१६४. रा० ७,८,२१,२४,३२, ३४,३६,३७,४२,४७,५०,५१,५६,५८,६७, ६६,७६,१२४,१४५,१५७,१६३,१६४,१६६, १७३,१८६,२०४ से २०६,२१६,२४३,२४५, २५५,२५६,२८०,६७२,६८१ से ६८३,६६१, ६९२,७००,७०३,७१४ से ७१६,७७१,८१५. जी० ३।३५,३६,४०,४१,४३,४४,४६,१७४, २६१,२६६,२६६,२७७,२८५,२८८,३००, ३०६,३०७:३११,३३५,३४०,३५०,३५२, ३५५,३५६,३६६,३७२,३७४,३७८,३८७, ३६५,४०५,४०७,४१२,४१६,४२५,४४६ से ४४८,५५७,५६३,५६२,५६६,६५८,६६३, ६७२,६७३,६८५,७२८,७३३,७३७,७४०, ७४२,७४५,७५०,७६२,७६५.७६८,७७०, ८३८११२,१००६,१०३३,१०५४ स [स्व] ओ०६४,७१. रा ० ६,११,१३,५६,१५४ २८१,६८३,७२३,७२६,७३२,७३७,७४७, ७७४. जी० ३३२७,३५६ सइ [स्मृति] ओ० ४३ सइंदिय [ सेन्द्रिय ] जी० ६।१५ से १७,६६ सइय [शतिका] ओ० १८७. जी० ३१६८१ सउण [शकुन] ओ० ६. रा० १७४. जी०३।११ ११६,२७५,२८६,६३६ सउणरुय [शकुनरुत] ओ० १४६. रा०८०६,८० सउणि [शकुनि ] जी० ३१५६८ सउणिज्य [शकुनिध्वज] रा० १६२. जी० ३१३३५ २२५ वेसासिय वैश्वासिक ] ओ० ११७. रा० ७५० से ७५३,७६६ वेहाणसिय [वैखानसिक ] ओ० ६० वोच्छिण्णय [व्यवच्छिन्नक] रा० ७५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854