Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 827
________________ ७५० समजोतिभूत-समय समजोतिभूत [समज्योतिभूत] जी० ३।११८ समणुबद्ध [समनुबद्ध] रा० १४६,६७०. समज्जिणित्ता [समय॑] रा० ७५० ___ जी० ३।३२२,५६१ समज्जुइय [समद्युतिक] जी० ३।११२० समणोवासग [श्रमणोपासक ] ओ० १६२ समट्ट [समर्थ] ओ० ८६ से १५,११४,११७,१२०, समणोवासय [श्रमणोपासक ] ओ० ७७,१२०,१४०, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७,१६६,१७०, १६२. रा० ६६८,७५२,७८६ से ७६१ १७२,१७७,१८१,१८६ से १६१. रा० २५ से समणोवासिया [श्रमणोपासिका] ओ० ७७. ३१,४५,१७३,७५१,७५३,७५५,७५७,७५६, रा० ७५२ ७६१,७६३,७७१. जी० ३।८४,८५,११८, समण्णागय [समन्वागत ] ओ० ४३. रा० १२, १९८ से २०३,२७८ से २८५,६०१,६०२, ७५८,७५६. जी० ३११८,२८५ ६०५ से ६०७,६०६,६१०,६१२ से ६१७, समतल [समतल ओ० १६. जी० ३१५९६ ६२२ से ६२४,६२६,६२८,७८२,७८६,८६०, समताल [समताल ] ओ० १४६. रा० ८०६ ८६६,८७२,८७८,६६० से ६६२, ६६४ से समतुरंगेमाण [समतुरङ्गायत्] जी० ३।१११ ६६६,१०२४ समत [समस्त ] ओ० ६३. जी० ३७०१ समत्तगणिपिडग समस्तगणिपिटक ओ० २६ समण [श्रमण] ओ० १६ से २५,२७,३३,४६ से समत्थ [समर्थ] ओ० १४८,१४६. रा० १२,७३७, ५३,५५,६२,६६ से ७१,७८ से ८३,९५,११७, ७५८,७५६,७७०,८०६. जी० ३।११८ १२०,१५५,१५६,१६२,१७०. रा० ८ से १३, १५,५६,५८ से ६५,६८,७३,७४,७६.८१.८३. समन्नागय [समन्वागत ] रा० १७३ ११३,११८,१२०,१२१,१३१,१३२, १४७ से समप्पभ [समप्रभ ] रा०२८५. जी. ३१४५१ १५१, १८५,१६७,६६७,६६८,६७१,६६८, समबल [समबल ] जी० ३।११२० ७१८,७१६,७३६,७४८ से ७५०,७५२,७८७ से समभिजाणित्ता [समभिज्ञाय] रा० २७६. ७८६,८१७. जी० २५६,६२,६५,८२,६६, जी० ३।४४२ १२८, २।१४०; ३३१७६,१७८,१८०,१८२, सिमभिलोय [सं+अभि+लोक्]-समभिलोएइ. रा० ७६५—समभिलोएति. रा०७६५. २५६,२६९,२६७,३०१,३०२,३२१ से ३२४, -समभिलोएमि रा० ७६४ ५८२,५८६ से ५६५,५६८,६००,६०३ से समय समय ] ओ० १,१८,१९,२३ से २५,२७, ६०७,६०४ से ६१७,६२०,६२२ से ६२५, २८,४५,४७ से ५१,८२,११५,१७३,१७४, ६२७,६२८,६३०,७६५,८४१,९६५,१०५६, १८२,१६५।३. रा० १,७,७६,१७३,२७४, ११२० ६६८,६७६,६८५,६८६,७७१. जी० १९,३३; समणी [श्रमणी] जी० ३७६५,८४१ २।४८,५४ से ५६,६५,८६,८८,८६,११७, समणुगच्छ [सम् + अनु+ गम्]-समणुगच्छंति १२३,१३२ : ३।८६,६०,११८,११६,२१०, रा० ५५ २११,२८५,४३६,५८८,५८६,८४१,८४४, समणुगम्ममाण [समनुगम्यमान] ओ० ६५. ८४७,६७३,१०८३,१०८५,१०८६;७।१ से ___जी० ३॥१७४ ६, ६ से १८, २० से २३ ; ६१ से ७, २४, समणुगाहिज्जमाण [ समनुग्राह्यमान ] जी० ३ १७४ २५,४०,४३,४८ से ५१,५७,६०,११४,११८, समचितिज्जमाण [समनुचिन्त्यमान ] जी० ३।१७४ १२४,१२५,१२७,१३४,१३८,१४२,१४६, समणुपेहिज्जमाण [समनुप्रेक्ष्यमान ] जी० ३।१७४ ।। १५०,१५२,१६१,१६२,१७१,१७२,१७६, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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