Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 808
________________ वाइज्जत-वायणा ७३१ वाइज्जत [वाद्यमान] रा० ७७ वाणमंतर [वानव्यन्तर] ओ० ४६८६ से ६३. वाइत्त [वादित्र] रा० ११४,२८१ रा० ११,५६. जी० १११०१,१३५, २।१५, वाइय [वाद्य] जी० ३।४४७ १६,७१,७२,९५,६६,१४८,१४६ ; ३।२१७, वाइय [वादित] ओ० ६८,१४६. रा०७,७८, २३०,२५१,२६७,२६८,३५८,४०२,४४६, ८०६. जी० ३१३५०,५६३,१०२५ ४४८,४५५,४५७,६३७,६५६,७६०,८५७,६१७ वाइय [वातिक] ओ० ११७. रा० ७६६ वाणमंतरी [वानव्यन्तरी] जी० २।३८,७१,७२, वाइय [वाचिक ] ओ०६६ १४८,१४६ वाउ [वायु] ओ० ४६. जी० १११२८,१३३; वाणिज्ज वाणिज्य] जी० ३१६०७ २.१३०,१३६; ३:३०७,३६३ ; ५।१७,२०,२४, वात [वात] रा० १७३ २५२७ वातकरग [वातकरक] जी० ३।३५५,४१६,४४५ वाउकाइय [ वायुकायिक ] जी० २।१३८; ५॥१,६, वाव [वादय् ] ---वादेति, जी० ३।४४७ २६,३१,३३,३६८1५६।१८२,१८४,२५६, वादित /वादित जी० ३८४२,८४५ २५७,२६२,२६६ वाबाहा [व्याबाधा] जी० ३३६२०,६२५ वाउकाय [वायुकाय] रा० ७७१. जी० ३।१३५, वाम [वाम] ओ० २१,४७,५४. रा०८,७०, ७२५,७२८ १३३,२६२,७६७,७६८,७७६,७७७. जी० ३।४५ वाउक्कलिया [वातोत्कलिका] जी० १८१ वाम [वाम,व्याम'] ओ० ५,८ जी० ३।२७४ वाउक्काइय [वायुकायिक] जी० ११७५,८०,८२; वामण [वामन] जी० ११११६ २।१०२,१४६,१४६; ३।१६५; ५८,१४,२०, बामणिया [वामनिका] रा० ८०४ ८.१,३ वामणी [वामनी] ओ० ७० वाउभाम [वातोभ्राम] जी० ११८१ वामद्दण [व्यामर्दन] ओ० ६३ बाउयाय [वायुकाय] रा० ७७१ वामहत्थ [वामहस्त] जी० ३।३०३ वाउवेग [वायुवेग] जी० ३३५६८ वामुत्तग [दे० वामोत्तक,व्यामोत्तक] जी० ३१५६५ वाएता [वाचयित्वा] रा० २८८. जी० ३।४५४ धाय [वात ] ओ० ४६,६४. रा० ४०,५०,५२,५६, वाकवासि [वल्कवासिन्] ओ०६४ १३२,१३७,२३१,२४७,२८५,७७१. ‘वागर [वि+आ+कृ]-वागरेइ. ओ० ६६ जी०३।२६५,२८५,४५१,५८०,७२६ वागरण [व्याकरण] ओ० २६,६७. रा०१६, Vवाय [वाचय]-वाएति. रा० २८८. ७१६,७६८ जी० ३।४५४. वायंति.--ओ० ४५ वागरमाण [व्याकुर्वाण] ओ० २६ वाय [वादय् ]--वाइज्जइ रा० ७८३-वाएंति वागरेयव्व [व्याकर्तव्य] जी० ३१७७ रा० ११४ वाघाइम [व्याघातिन् व्याघातिम] ओ० ३२. वायंत [वादयतु] ओ० ६४ जी० ३३१०२२ वायकरग [वातकरक] रा० १५३,२५८,२७६. वाघातिम [व्याघातिन्, व्याघातिम] जी० ३।१०२२ जी० ३।३२६ वाघाय [व्याघात] जी० २।४६,८२ वापणा [वाचना] ओ० ४२,४३ वाड [वाड, वाट] जी० ३८७८ १. अनेकाभिर्नरवामाभिः सुप्रसारिताभिः (ओ०३० वाण [वाण] ओ० १३ अनेकन रव्यामः पुरुषव्यामः सुप्रसारितैः वाणपत्थ [वानप्रस्थ] ओ०६४ (जी०व०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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