Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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वियाणित्ता-विसय
७३७
विवच्चास [विपर्यास | रा. ७६७,७६८,७७६,
७७७
वियाणित्ता [विज्ञाय] ओ० १४६. रा० ८१० वियाणिय [विज्ञात] ओ० ७० वियालचारि [विकालचारिन् ] ओ० १४८,१४६.
रा० ८०६,८१० विरइय [विरचित] ओ०६,६३. जी० ३१२७५ विरचिय विरचित रा० ६६,७० विरत [विरत ] ओ० ४६ विरय [विरत ] ओ० १६८ विरल्लिय [विरल्लित] जी० ३।५९१ विरसाहार | विरसाहार] ओ० ३५ विरहित विरहित जी० ३१७६१,८४४ विरहिय विरहित ] ओ० ३७. जी. ३१८४७ विराइय [विराजित] ओ० १४,४७,५७,७२.
रा० ७०,६७१. जी० ३१५६७,११२१ विरागया | विरागता] ओ० ४६ विरायंत [विराजत् ] ओ० २१,५४,५७. रा० ८,
७१४ विरायमाण [विराजमान] ओ० १ विराहय [विराधक ] रा० ६२ विरिय [वीर्य] जी० ३।५६२ विरुद्ध विरुद्ध ] ओ०६३ विरूवरूव विरूपरूप] रा० ८१६ विलंबिय बिलम्बित ] १० १०३.२८१.
जी० ३।४४७ विलवणया | विलपनता] ओ० ४३ विलविय [विलपित] ओ० ४६ विलसिय विलसित] ओ०१६ विलास | विला] ओ० १५. रा० ७०,६७२,
८०६,८१०. जी० ३१५६७ विलासित | विलाशित ] जी० ३५९६ विलीण विलीन जी० ३८४ विलेवण दिलपन ओ०६३,१६१,१६३,१७० विलेवणविहि [वि पन विधि ] ० १४६.
रा०८०६ विव [इव | ओ० १६. रा० १३३. जी० ३३१११
विवणि [विपणि] ओ० १. जी० ३.६०७ विवर | विवर] रा० ७५४ से ७५७,७६३ विवागविजय | विषाकविचय | ओ० ४३ विवागसुयधर [विपाकश्रुतधर | ओ० ४५ विवाह [विवाह ] जी० ३।६३१ विवाहपण्णत्तिधर [व्याख्याप्रज्ञप्तिधर | ओ० ४५ विवित्तसयणासणसेवणया विविक्तशवनासन
सेवनता ओ० ३७ विविध [विविध जी० ३।३०२,३८७,५८८,५६४ विविह | विविध | ओ० १,४६,५१,११७. रा० २०,
४०,१३२,१३७,२२८,७६६. जी० ३।२६५, २८८,३०७,३११,५८६.५८७,५८६ से ५६३,
५६५,६७२ विवेग [विवेक] ओ० ४३,७६ से २१ विवेगारिह [विवेकार्ह ] ओ० ३६ विस विष] रा० ७६१,७६४,७६५ विसज्जित [विजित] रा० ६८५ विसज्जिय विजित ] ओ० २१. रा०६८०
६६६,७००,७०२,७१० विसप्पमाण | विसपत्] ओ० २०,२१,५३,५४,
५६,६२,६३ ७८,८०,८१. रा०८,१०,१२, से १४.१६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४, २७७,२७६,२८१,२६०,६५५,६८१,६८३, ६६०,६६५,७००,७०७,७१०,७१३,७१४, ७१६,७१८,७२५,७२६,७७४,७७८.
जी० ३१४४३,४४५,४४७,५५५,५६७ विसभक्खियग | विषभक्षितक] ओ०६० विसम | विषम] ओ० १७१. जी० ३।६२३,७०५,
७६७,८११,८२२,८४६ विसय | विशद] रा० १३३. जी० ३१३०३,५६२,
५९६
विसय | विषय] ओ० २३,३७. रा०१५. जी०
३९७६,९७७
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