Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 807
________________ ७३० वलक्ख-वा वलक्ख [वलक्ष] जी० ३३३२२,५६३ वलभी [वलभी] जी० ३१६०४,७६३ वलभीघर [वलभीगृह ] जी० ३१५६४ वलय [वलय] जी० ११६६३३३७ से ४०,४२, ४४ से ५०,५६३,७०४,७६३,७६६,८१०, ८२१,८३१,८४८,८५६,८६२,८६५,८६८, ८७१,८७४,८७७,८८०,६२५ वलयमयग [वलयमृतक] ओ०६० वलयामुह [वडवामुख] जी० ३।७२३ वलयावलिपविभत्ति वलयावलिप्रविभक्ति] रा० ८५ वलि [वलि] जी० ३५९७ वलित [वलित] जी० ३।५६६ वलिय [वलित] ओ०१५,१६. रा० १२,६७२, ७५८ से ७६१. जी. ३१५६७ वल्ली [वल्ली] जी०१।६६,३।१७२ ववगत [व्यपगत ] जी० ३३५६७,६१०,६१२ से ६१६,६२४,६२७,६२८ ववगय [व्यपगत] ओ० १४,६२. रा०६७१. जी० ३।६०७,६०६,६२२ विवरोव [व्यप+रोपय]-ववरोवएज्जा. रा० ७५१-ववरोविज्जइ. रा० ७६७ -बवरोवेमि. रा० ७५६-ववरोवेहि. रा० ७५१ ववरोवेत्ता [व्यपरोप्य ] रा० ७५६ विवस [वि+अव+सो]-ववस इ. रा० २८८. जी० ३।४५४ ववसइत्ता [व्यवसाय] रा० २८८. जी० ३।४५४ ववसाय व्यवसाय ] ओ०४६. रा०२८८. जी० ३४५४ ववसायसभा [व्यवसायसभा] रा० २६६,२७१, २७२,२८६,२८८,५६४,५९६,५६७,६१६, ६३४,६३५. जी० ३।४३४,४३६,४३७,४५२, ४५४,५४७,५४६ से ५५३ ववहार [व्यवहार] रा० ६७५ ववहारग [व्यवहारक] रा० ७६६ ववहारि [व्यवहारिन् रा० ७६६ वस [बश ओ० २०,२१,५३,५४,५६,६२,६३, ७८,८०,८१. रा० ८,१०,१२ से १४,१६ से १८,४७,६०,६२,६३,७२,७४,२७७,२७६, २८१,२६०,६५५,६८१,६८३,६६०,६६५, ७००,७०७,७१०,७१३,७१४,७१६,७१८, ७२५,७२६,७७४,७७८. जी० ३।४४३,४४५, ४४७,५५५ विस [वस्]-वसाहि. ओ० ६८. रा० २८२. जी० ३१४४८ वसंतलया [वासन्तीलता] रा० २४ वसट्टमयग [वशार्तमृतक] ओ० ६० वसण [वसन] रा० २६,२८,६६,७०,१३३. जी० ३।२७६,२८१,३०३,११२१ से ११२३ वसणभूत [व्यसनभूत] जी० ३।६२८ वसणुप्पाडियग [उत्पाटितकवृषण] ओ०६० वसभ [वृषभ ] ओ० २७. रा० ८१३. ___ जी० ३३१०१५ वसमाण [वसत्] रा०६८३,७०६ पसह [वृषभ] रा० २४ वसहि [वसति] ओ० ३७,११८,११६,१६५. जी० ३१६०३ वसु [वसु] जी० ३११७ वसुंधरा [वसुन्धरा] ओ० २७. रा० ८१३. जी० ३१६२२ वसुगुत्ता [वसुगुप्ता] जी० ३।६२२ वसुमित्ता [वसुमित्रा] जी० ३।६२२ वसू [वसू] जी० ३।६२२ वह [वध] ओ० ४६,७३,१६१,१६३. रा० ६७१ वहक [वधक] जी० ३।६१२ वहमाणय [वहमानक ] ओ १११ से ११३,१३७, वा [वा] ओ० ५२. रा० ६. जी० ३१११७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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