Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 768
________________ पुव्वंग-पेम ६६१ जी० ३।२६५,२८५,३५८,८४१,८८१,९८८, पुहत्तवियक्क [पृथक्ववितर्क ] ओ० ४३ ९८६ पूइकम्म [पूतिकर्मन् ओ० १३४ पुथ्वंग [पुर्वाङ्ग] जी० ३.८४१ पूइत्तए [पूजयितुम् ] ओ० १३६ पुवकोडि [पूर्व शोटि] जी० १६१०१, ११६,१२३, पूइय [पूजित] ओ० १४. रा० ६७१ १२४, २१२२,२४,२६ से ३४,४८ से ५०, ५३ पूइय पूतिक रा०६,१२. जी० २६२२ से ६१,८३,८४,१०६,११३,११४,११६.१२२ पूय [पूत ] ओ०६८ से १२४; ३।१६१,१६२,११३५; ६६; ७।१२; पूयण [पूजन] ओ० ५२. ० १६,६८७,६८९ ९।४१,१४२,१४४,१४६,१६२,२००,२०३, पूणिज्ज [पूजनीय] ओ० २. रा० २४०, २७६. २१२,२२५,२३८,२७३ जी० ३।४०२, ४४२ पुथ्वकोडिय [पूर्वकोटिक ] ओ० १८८ पूयफलिवण पूगफलीवन जी० ३१५८१ पुष्वक्कम [ पूर्वक्रम] जी० ३१८८० पूर [पूरय]---पूरेइ. ओ० १७४ पुब्वणत्थ | पूर्वन्यस्त रा० ४८. जी० ३१५५८ से पूरिम पूरिम, पूर्य] ओ० १०६,१३२. रा०२८५. ५६०,५६२ __ जी० ३।४५१,५६१ पुवपुरिस [पूर्वपुरुष] ओ० २ पूस पुष्य] जी० ३८३८१३२ पुष्वभणित | पूर्वभणित ] जी० ३।८८१ पूसमाण [पुष्यमाण] जी० ३१२७७ पुत्वभव पूर्वभव ] रा ० ६६७ पूसभाणय [पुष्यमानव ] ओ०६८ पुव्वरत्त [पूर्वरात्र] रा० १७३ पूसमाणव पुष्यमाणव रा० २४ पव्वविदेह [ पूर्व विदेह ] जी० २।२६,५६,६५,७०, पेच्च [प्रेत्य] ओ० ८८ ७२,८५,६६,११५ १२३,१३२,१३७,१३८, पेच्चभव [प्रेत्यभव ] ओ० ५२. रा० ६८७ १४७,१४६; ३।४४५,७६५ पेच्छणघरग [प्रेक्षणगृहक जी. ३।२६४ पुव्वाणुपुन्वी | पूर्वानुपूर्वी ] ओ० १६, २०,५२,५३. पेच्छणिज्ज प्रेक्षणीय | ओ० १. जी. ३।५६७ रा० ६८६, ६८७,७०६,७११, ७१३ पेच्छाघर [प्रेक्षागृह ] जी० ३१५६१,६०४ पुव्वाभिमुह । पूर्वाभिमुख ] रा०८ पेच्छाधरमंडव [प्रेक्षागृहमण्डप] रा० ३४,२१५, पुव्वावर | पूर्वापर रा० १६३,१६६. जी० ३।१७४, २१६,२२०.२२१,३०० से ३०४,३३१ से ३३५,३५५, ३५७,६५८,७२८,७३३,१००६, ३३५,३३८ से ३४२. जी० ३।३७६ ३७६, १०२३ ३८०,४१२,४६५ से ४६६,४८६ से ४६०, पुवि [ पूर्व ] ओ० ११७. रा० ६३, ६५, २७५, ५०३ से ५०७,८८६,८६३ २७६,७८१ से ७८७. जी०२।१५०, ३१४४१, । - पेच्छिज्जमाण [प्रेक्ष्यमाण] ओ०६६ ४४२ पेच्छित्तए प्रेक्षितुम् ] ओ० १०२,१२५ पहत्त [पृथक्त्व | जी० १११०३, १११,११२,११६, पेज्ज प्रेयम् ] ओ० ७१,११७,१६१,१६३. १२४,१२५,२।४८ से ५०, ५३,५४,५६,८२ रा० ७६६ से ८४,६२,६३,१२२ से १२५,१२८, ३१११०, पेज्जबंधण [प्रेय बंधन जी० ३१६११ १६७,११५५,१११६,११३५,११३७,४११५; पेज्जविवेग प्रेयोविवेक ] ओ०७१ पेढ पीढ] जी० ३१६६८ १२३,१२८,२१२,२१७,२२५,२३८,२४४, पेम प्रेमन् ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८,७५२, २७३,२८० ७८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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