Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भत्त-भवग्गहण
भत्त [भक्त] ओ०१४,१७,३२,३३,११७,१४०, भमुया [5] ओ० ३४५६७
१४१,१५४,१५७,१६२,१६५,१६६. रा० भमुह [5] ओ० १६. रा०२५४, जी० ३१४१५ ६७१,७७४,७८७,७८८,७६६,८१६
भय [भय] ओ०१४,२५,२८,४६. रा० ६७१, भत्तकहा [भक्तकथा] ओ० १०४,१२७
६८६. जी० ३:१२७,१२८ भत्तपच्चक्खाण [भक्त प्रत्याख्यान] ओ० ३२ भयंत भदन्त'] ओ० ७२,१६७ भत्तपाणविउस्सग्ग [भक्तपानव्युत्सर्ग] ओ० ४४ ।। भयग [भृतक] जी० ३१६१० भत्ति [भक्ति] ओ० ४०,५२. रा० १६
भयणा [भजना] जी० १११३६ ; ३।१५२ भत्तिघर [भक्तिगृह] जी० ३।५६४
भयव भगवत् ] रा० १२१ भत्तिचित्त [भक्तिचित्त | ओ० १३,६३. ० १७, भयसण्णा [ भयसंज्ञा] जी० ११२० ; ३।१२८ १८,२०,२४,३२,३४,३७,५१,१२६,१३७,
भर [भर रा० २२८. जी० ३।३८७,७८४,७८७ १५६,२६२. जी०३।२७७,२८८,३००,३०७, भरणी [ भरणी] जी० ३३१००७ ३०८.३११.३३२,३३७,३५६,३७२,३६६,
भरत [भरत जी० २१३२,३ ६७२ ४५७,५६७,५६३,५६५,६०४
भरह [भरत ] ओ०६८. रा० २७६,२८२. जी. भत्तिपुव्वग [भक्तिपूर्वक ] रा० ६३,६५
२।१४,२८,५५,७०,७२,६६,११५,१२२,१४७, भद्द [भद्र ] ओ० ४७,६८,७२. रा० २८२. जी०
१४६; ३।२२६,४४५,४४७७६५ ३४४८
भरिय [भरित] ओ० ४६,५७,६४. रा० १७३, भद्दग [भद्रक] जी० ३१५६८,६२०,६२५,७६५,८४१
६८१ भद्दपडिमा [भद्रप्रतिमा] ओ० २४
भव [भू]-भवइ. ओ० २८. रा० २००. भद्दमोत्था [भद्रमुस्ता] जी० ११७३
जी० ३३५६-भव उ. ओ० २०. रा०७१३. भद्दय [भद्रक] जी० ३।७६५
-भवंति. ओ० २०. रा० १२४. जी. ३१७७
-भवति. रा० १२६. जी० ३१२७२-भवह. भद्दया [भद्रता] ओ० ७३,६१,११६
रा०७१३--भवाहि. रा०७५०-भविस्सइ. भद्दसालवण [भद्र शालवन] रा० १७३,२७६. ___ जी० ३।२८५,४४५
अ.० ५२. रा० २००-- भविस्सति. भद्दा [भद्रक] ओ० ६८. रा०२८२. जी० ३४४८
जी० ३।५६-भविस्सामि. रा० ७७५ भद्दा [भद्रा] जी० ३।६१५
—भवे. रा० २५. जी० ३१८४-भवेज्जासि. भद्दासण [भद्रासन] ओ० १२,६४. रा० २१,४१
रा० ७७४ - वि. रा० २००. जी० ३१५९ से ४४,४८,४६,१८१,१८३,२६१,६५८ से भव [भव ] ओ० ४६,१६५।३,७,८ ६६४. जी० ३.२८६,२६३,३३६ से ३४५, भवंत [भवत् रा० १५ ३६८,३७०,५५८ से ५६०,६३५
भवक्खय [भवक्षय] ओ० १४१,१६५६.
रा० ७६६ भमंत [भ्रमत् ] ओ०४६. रा०१७४. जी०
भवग्गहण [भवग्रहण] जी० ७.५,६,१०,१२,१५ ३।११८,११६,२८६
से १८६२ से ४,४०,५१,१७१,२३६,२३८, भममाण [भ्राम्यत, भ्रमत्] ओ० ४६ भमर [म्रमर ] ओ०६,१६. रा० २५. जी० १. 'भयंतारो' त्ति भदन्ताः कल्याणिनः भत्तारो वा ३।२७५,२७८,५९६
नग्रन्थ प्रवचनस्य सेवयितारः [वृ० पृ० १५२] भमरपतंगसार [भ्रमरपतङ्गसार] रा० २५. जी० 'भयंतारो' त्ति भक्तार: अनुष्ठान विशेषस्य ३१२७८
सेवयितारो भयत्रातारो वा [वृ० पृ० २०३] ।
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