Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 751
________________ ६७४ पणि-पत्तियमाण जी० ३४५७,४७१,५१६ पिण्णाय [प्र.-ज्ञा] ----पण्णायति. जी. ३६EE पणि [पण्य ] जी० ३ ६०७ पण्णास [पञ्चाशत् ] रा० २०६. जी० २।३६ पणिय पणित, पण्य ] ओ० १. रा० ७७४ पण्हावागरणवसाधर [प्रश्नव्याकरणदशाधर ] पणियगिह [पणित, पण्यगृह ] ओ० ३७ ओ० ४५ पणियसाला [पणित°, पण्यशाला] ओ० ३७ पतणतणाइत्ता प्रतनतनाय्य] रा० १२ पणिहाय प्रणिवाय, प्रणिहाय जी० ३१७३ से पितणतणाय [प्र-तनतनाय]--पतणतणायंति. ७५, १२४,१२५,७६५,१०२५ रा० १२ पणीत प्रणीत ] जी० १११ पतणु [प्रतनु] ओ० ६१,११६ पणीयरसपरिच्चाय [प्रणीतरसपरित्याग ] ओ० ३५ पतरग [प्रतरक | जी० ३।३०२ पणुवीस [पञ्चविंशति] जी० ३।२२६३५ पतव [प्र.। त]--पतवंति. जी० ३।४४७. पणोल्लिय प्रणोदित] ओ० ४६ -पतवेंति. रा० २८१ पण्णओ [प्रज्ञातस्] रा० ७५२,७५४,७५६,७५८, पतिट्ठाण [प्रतिष्ठान] रा० १६,१७५. ७६०,७६२,७६४ जी० ३२८७,३००,४४६,४४८ पण्णगद्ध [पन्न गार्ध] जी० ३।३०२ पत्त [पत्र] ओ०५,६,८,१३,१६,२७,६४. रा०६, पण्णट्ठ [पञ्चषष्टि] जी० ३।२२२ १२,२६,३१,१६१,१७४,२२८,२५८,२७०, पण्णट्टि [पञ्चषष्टि] रा० १६४ २७६,७८२. जी० ११७१,७२, ३।११८,११६, पण्णत्त [दे०] ओ०१ २७४,२७५,२७६,२८३,२८४,२८६,३३४, पण्णत्त [प्रज्ञप्त ओ० २. रा० ३. जी० १११ ३८७,४१६,४३५,४५४,५८१,५८६,५९६, पण्णत्तर [पञ्चमप्तति] जी० ३।२४६ ६२२,६४३,६७२ पण्णत्तरि [पञ्चसप्तति ] जी० ३।६६१ पत्त [प्राप्त] ओ० ३७,११७,१४०,१५७,१६२, पण्णत्ति [प्रज्ञप्ति] रा० ८१७ १६५।१६,२२. रा० १,६३,६५,६६७,७६६, पण्णरस [पञ्चदशन् ] जी० ३।१२ ७९७. जी० ३८६७ पण्णरसविध [पञ्चदशविध] जी० ३।२२६ पत्तच्छेज्ज [पत्रच्छेद्य ] ओ० १४६. रा० ८०६ पण्णरसविह [पञ्चदशविध ] जी० ११८०; २।१४ पत्तट्ठ (दे० प्राप्तार्थ ] ओ०६३. रा० १२,७५८, पिण्णव [प्र-| ज्ञापय् ] -- ण्णव इंसु. जी० १११. ७५६,७६५ ७६६,७७० -~पण्णवे. ओ० ५२. रा० ६८७. -पण्णवेंति पत्तभार [पत्रभार] ओ० ५,८. जी. ३।२७४ जी० ३।२१०.-पण्णवेहेंति. जी० ३१८३८३ पत्तमंत [पत्रवत् ] ओ०५,८. जी० ३।२७४ पण्णवणा प्रज्ञापना] रा० ७७४. जी० १२५,५८, पत्तल [पत्रल ओ० १६,४७. जी० ३१५९६,५६७ ७२,१००,११०,१११,११६,११८,१२६,१३५; पत्तासव [पत्रानव जी० ३८६० १८६; ३।१८४,२१४,२३२,२३३ पत्ताहार [पत्राहार ओ० ६४ पण्णवणापद [प्रज्ञापनापद] जी० ३।२२०,२३१ पत्तिय [प्रतिइ] ---पत्तिएज्जा. रा. ७५०. पण्णवित्तए [प्रज्ञापयितुम् ] रा० ७७४ ---पत्तियामि. रा० ६६५ पण्णवीस [पञ्चविंशति] जी० ३।१२ पत्तिय [पत्रित रा० ७८२ पण्णवेमाण [प्रज्ञापयत् ] ओ० ६८ पत्तियमाण [प्रतियत् ] जी० १११ १ द्रष्टव्यम् ---निशीथभाष्य ४४३५ । १. अनुकरण वचन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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