Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 765
________________ ६८८ पुंड [ पुण्ड्रक ] जी० ३८७८ पुंडगी [पुण्डरीकणी ] जी० ३।६१५ पुंडरीय [ पुण्डरीक ] ओ० १२,१६,२१,५४. रा० ८,२७६,२६२. जी० ३।११८, ११६, ४५७, ५६६, ८२६ पुंड [ पुण्डरीद्रह ] जी० ३।४४५ क्खर [ पुष्कर ] ओ० १७० रा० २४,६५,१७१. जी ० ३।२१८,२७७, ३०६, ५७८,६७०, ७५५, ७७५,८१६,८१७,८२१ से ८२५, ८२७,८२६ से ८३१,८४८,८८३ पुवखरकष्णिया [पुष्करकणिका ] जी० ३३८६,२६० पुक्खरगय [ पुष्करगत ] ओ० १४६. रा० ८०६ क्खरणी [ पुष्करणी ] जी० ३।६०१,६१०,६११, १४ से १६ पुवखरत्थभग [ पुष्करस्थिभुक ] जी० ३।६५४ पुवखरत्यय [ पुष्करस्थिभुक ] जी० ३१६४३,६५४ पुषखरद्ध [ पुष्करार्ध ] जी० ३१८३१ से ८३४ खरपत्त [ पु'करपत्र ] ओ० २७. रा० ८१३ पुखरवर [ पुष्करवर ] जी० ३।७७४,७७५ दुक्खश्वर [ पुष्करवरग] जी० ३१७७४ खरिणी [ पु'करिणी] ओ० ६,६६. रा० १७४, ८१६,८२८ पुट्ठ [पुष्ट ] जी० ३१५६७ पुलाभिय [ पृष्टलाभिक ] ओ० ३४ पुट्ठि [ पुष्टि ] जी० ३।५६२ पुड [ पुट ] रा० ३०. जी० ३।२८३,१०७८ १७५,१८०,२३३,२३४,२७३,२८८,३१२,३१३, पुढवि [पृथिवी ] ओ० १८६,१६१ से १६५. ३५०, ३७६, ४३५, ४६६, ५५६, ६१६, ६५६. जी० ३।११८, ११६, २७५, २८६, ३६५, ३६६, ४१२, ४२५४३८, ४५४,४७७,५१५, ५२३, ५२६,५३७,५४४,५५१,५५६,६८३ से ६८६ पुषखरीद [ दुरोद ] जी० ३।४४५, ७७५,८२५, जी० ११६२,१२१ से १२५२।१००,१०८, १३०,१३५, १३८, १४८, १४९, ३।१६१, १६२, १६५, १६६,३०३,७७५, ६३७, ६७४ ५ २०,३३ पुढविकाइय [ पृथ्वीकायिक] जी० १।१२,१३,६२, १२८ २।१०२,१११.१३६,१३८, १४६ ; ३।१३१ से १३५, १८३, १८४,१९४.१६५; ५ १, २, ५, ८, १८ से २० ८१५; ६।१८२, १८४, २५६,२५७,२६२, २६३,२६६ ८४८ से ८५१,८५४ से ८५६,८५६, ८७६, ६४६, ४६६५७, ६६२, ६६४ पुढविकाल [ पृथ्वीकाल ] जी० ५। १७,२२,३०, ८३ ६ ७७, ८५.६६ पुढविक्काइय [ पृथ्वीकायिक ] जी० १२६७; २।१३६,१४६; ३।१२६,१३२ ५ १२,२०१ ८११,३ पुक्खरोदग [ पुष्करोदक ] जी० ३।४४५ क्खरोदय [ पुष्करोदक ] रा० २७६ पुग्गल परियट्ट [ पुद्गलरिवर्त ] जी० १११३६ √ पुच्छ [ प्रच्छ् ] - पुच्छइ. २० ७१६. - पुच्छति. रा० ७१३. - पुच्छसि रा० ७३७. - पुच्छिरसामो रा० १६ Jain Education International पुंग- पुढविकाइय पुच्छणा [ प्रच्छना ] ओ० ४३ पुच्छा [ पृच्छा ] ओ० १९० जी० १।६१; ३\४, १२,३५,४१,४३,८२,६६ से १०२, ११३ से ११५, १२५, १५५, १५६, १६२, १६३, १६६, १६८,१६६,१८७ से १६१, २३३,२३४, २४३, ७२२,७३६; ८२०,८३०, ८३४,८३७, ६५६, ६५७, ६५६, ६६०, ६६८, ६७८, ६७६, १०१११०४१, १०४४,१०४५,१०५२, १०५६, १०६२ से १०६४, १०६६, १०७४, १०८६,१११८, ११२६,११३२; ४१६ ; ५३१७ पुच्छितव्य [ प्रष्टव्य ] जी० ३।३६,७७ पुच्छिय [ पृष्ट ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२७८६ पुच्छिष्य [ प्रष्टव्य ] जी० ३।२४४ पुट्ट [ स्पृष्ट ] ओ० १६५ ६,१०. जी० १/४१; ३।२२,५७१,५७३,५७७,७१५,७१७,८०३, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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