Book Title: Uvangsuttani Part 04 - Ovayiam Raipaseniyam Jivajivabhigame
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 746
________________ पचंकमणग-पच्चोत्तर पचंकमणग [प्रचंक्रमणक] रा० ८०३ --पच्चप्पिणह. रा० ६. जी० ३।५५४ पिच्चक्ख, क्खा [प्रति--आ+ख्या]--पच्चक्खंति ____पच्चप्पिणाहि. ओ० ५५. रा० १७ ओ० १५७--पच्चक्खामि. रा०७६६ -पच्चप्पिणज्जा. ओ० १८० -पच्चक्खामो. ओ० ११७ --- पच्चक्खाइस्सइ. -~-पच्चप्पिणेज्जाह. रा० ७०६ रा० ८१६ पच्चमाण [पच्यमान] जी०३।१२६८ पच्चक्खाण [प्रत्याख्यान ] ओ० १२०,१४०,१५७. पच्चामित्त [प्रत्यमित्र] ओ० १४. रा०६७१. रा० ६६८,७५२,७८७,७८६ ___ जी० ३।६१२ पच्चक्खाय [प्रत्याख्यात] ओ० ८४,८५,८७,८८, पिच्चाया [प्रति+आ+जन्]--पच्चाइस्सइ. ११७,१२१,१३६. रा० ७६६ रा० ७६७-पच्चायंति. ओ० ७१. पच्चक्खित्ता [प्रत्याख्याय ] ओ० १५७ जी० ३५७२--पच्चायाहिति. ओ० १४१. पच्चणुब्भवमाण [प्रत्यनुभवत् ] रा० १८५,१८७, पच्चावड [प्रत्यावर्त ] रा० २४. जी. ३१२७७ ७५१. जी. ३।१०६,११८,११६,१२२,१२३, पच्चुण्णम [प्रति + उत्। नम्] -पच्चुण्णमइ २१७,२६७,२६८,५७६ ओ० २१. रा० २६२-पच्चुष्णमति. पच्चणुभवमाण [प्रत्यनुभवत् ] ओ० १५. जी० ३।४५७ रा०६७२,६८५,७१०,७७४. जी० ३।११६, पच्चुण्णमित्ता [प्रत्युन्नम्य ] ओ० २१. रा० २६२. ११८,११६,१२८,३५८,१११४,१११७,१११८, जी० ३।४५७ ११२४ पच्चुत्तर [प्रति-उत्+त]-पच्चुत्तरति. पच्चत्थिम [पाश्चात्य ] रा०४३,४४,१७०,२३५, जी० ३।४४३-पच्चुत्तरेइ. रा० ६५६. जी० ३।४५४ २३६,२४४,२४६,६६३,६६४. जी० ३।३००, ३४४,३४५,३६७,३६८,४०६,४१०,५६१, पच्चुत्तरित्ता [प्रत्युत्तीर्य ] जी० ३।४४३ ५६२,५६८,५७७,६३२,६६१,६६६,६६८, पच्चुत्तरेत्ता [प्रत्युत्तीर्य] रा० ६५६. जी० ३४५४ ६७३,६८२,६६३,६६४,६६७,६६८,७०८, पच्चुत्थत [प्रत्यवस्तृत] जी ० ३।३११ ७१२,७४२,७४४,७५४,७६१,७६५,७६८, पिच्चद्धर [प्रति-|-उद्-+-धृ] ---पच्चुरिस्सामि जी० ३।११८ ७६६,७७१ से ७७३,७७६,७७८,८००,८१४, पच्चुद्धरित्तए प्रत्युद्धर्तुम् ] जी० ३।११८ ८२५,८५१,८८२,८८५,६०१,९३६,६४०, पच्चुन्नम [प्रति उत्-- नम्]--पच्चुन्नमइ. ६४४,१०१५ रा०८ पच्चथिमिल्ल [पाश्चात्य ] रा० २६६,२९७,३०१, पच्चन्नमित्ता [प्रत्युन्नम्य] रा०८ ३०६,३१७,३२२,३२७,३३५,३४०,३४५. पच्चूसकाल [प्रत्यूषकाल ] जी० ३।२८५ जी० ३।३३,२२०,२२१,२२४,२२५,४६१, पिच्वेक्ख [प्रति । उप-+ ईक्ष् ] -पच्चुवेक्खे इ. ४६६,४७१,४८२,४८७,४६२,५००,५०५, __ ओ० ५६ ५१०,५७७,६७३,६६५ से ६६७,७६९,७७१, पच्चुवेक्खमाण [प्रत्युपेक्षमाण] रा० ६७४,६८०, ७७३,७७५,७७७,६१५ ६६८ पच्चत्थुय [प्रत्यवस्तृत] रा० ३७ पच्चुवैक्खेत्ता [प्रत्युपेक्ष्य] ओ० ५६ पिच्चप्पिण [प्रति+अर्पय]-पच्चप्पिणइ. पच्चोणिवयंत [प्रत्यवनिपतत् ] ओ० ४६ ओ० ५७-पच्चप्पिणंति. रा० १२. पिच्चोत्तर [प्रति ---उत्+तु]-पच्चोत्तरइ. जी० ३१५५५-पच्चप्पिणति. रा० ४६ रा०२७७--पच्चोत्तरति. रा०२८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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