Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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राजा का आस्तिक्य युक्त कथन सुनकर मिथ्यादृष्टि मानव की वारणी रूप धूल के लिए जलदरूप स्वयंबुद्ध अवसर पाकर बोले -- 'महाराज, बहुत पहले अापके वंश में कुरुचन्द्र नामक एक राजा हुए थे। उनके कुरुमति नामक स्त्री और हरिश्चन्द्र नामक एक पुत्र था। वे क्रूर प्रकृति के थे और सदैव बड़े-बड़े प्रारम्भ समारम्भ किया करते थे। वे अनार्य कार्यों के नेता थे। दुराचारी थे, भयंकर थे और यमराज की भाँति निर्दय थे। उन्होने बहुत दिनों तक राज्य किया । कारण, पूर्व जन्म में उपाजित धर्म का फल अद्वितीय होता है। अन्ततः वे अत्यन्त दूषित धातु रोग से आक्रान्त हुए। उस समय रूई के नरम तकिए भी उन्हें कांटे की भाँति लगते । मधुर स्वादयुक्त भोजन नीम की भाँति तिक्त और कटुक लगते । चन्दन, अगरु, कस्तुरी आदि सुगन्धित वस्तुएं दुर्गन्धयुक्त लगतीं। स्त्री-पुत्रादि प्रियजन शत्रु की भाँति एवं सुन्दर मधुर गान गर्दभ, ऊँट या सियारों की चीत्कार से प्रतीत होते । कहा भी गया है-जब पुण्य नाश हो जाता है तब समस्त वस्तुएं विपरीत धर्मी हो जाती हैं।'
(श्लोक ४०८-४१५) 'कूरुमती और हरिश्चन्द्र गुप्त रूप से परिणाम में दुःखदायी किन्तु अल्प समय के लिए सुखकर नानाविध विषयोंपचार से उनकी परिचर्या करने लगे। अन्ततः कुरुचन्द्र के शरीर में ऐसी ज्वाला उत्पन्न हुई जैसे अंगारे उन्हें दग्ध कर रहे हैं। इस प्रकार दुःख से पीड़ित होकर रौद्रध्यान में उन्होने इहलोक का परित्याग किया।'
(श्लोक ४१६-४१७) ___ 'कुरुचन्द्र के पुत्र हरिश्चन्द्र पिता का अग्नि संस्कारादि कर सिंहासन पर पारूढ़ हुए। आचरण में वे सदाचार रूप पथ के पथिक थे। वे विधिवत् राज्य परिचालना करने लगे। पाप के कारण पिता की दुःखदायी मृत्यु देखकर वे धर्म सेवा करने लगे। ग्रहों में जिस प्रकार सूर्य मुख्य हैं उसी प्रकार समस्त पुरुषार्थ में धर्म ही मुख्य हैं ।'
(श्लोक ४१८-४१९) _ 'सुबुद्धि नामक उनका एक जिनोपासक बाल-मित्र था। हरिश्चन्द्र ने उससे कहा, तुम तत्त्वज्ञ से धर्म अवधारण कर मुझे सुनायो । सुबुद्धि भी तद्नुरूप उन्हें धर्मकथा सुनाने लगा। कहा भी है-मनोनुकूल प्रादर्श सत्पुरुष का उत्साहवर्द्धन करता है। पाप