Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[२३३ वहां विस्मित सुवेग ने सिंहासन पर बैठे तेज के देवता से बाहुबली को देखा। मानो आकाश से सूर्य ही उतर पाया हो ऐसे तेजस्वी रत्नमय मुकुटधारी राजा उनकी सेवा कर रहे थे । निज स्वामी के विश्वास रूप सर्वस्व वल्ली के सन्तान रूपी मण्डप के समान और परीक्षा द्वारा शुद्ध निर्णीत हो गए हों ऐसे प्रधानों का समूह उनके पास बैठा हुआ था। प्रदीप्त मुकुट सम्पन्न एवं जगत् के लिए असह्य ऐसे नागकुमारों-से राजकुमार उनके पास-पास उपस्थित थे। जिह्वा निकाले सर्पो-सी खुली तलवारें हाथ में लिए खड़े हजारों अंगरक्षकों से वे मलयाचल-से भयंकर लग रहे थे। चमरीमृग जिस प्रकार हिमालय को चमर-वीजन करते हैं उसी प्रकार अति सुन्दर वीरांगनाएँ उन्हें चमर वींज रही थीं। विद्युत् सह शरत्-कालीन मेघों से पवित्र वस्त्र और छड़ीवाहक छड़ीदारों से वे सुशोभित हो रहे थे। सूवेग ने शब्दकारी सुवर्ण की दीर्घ शृङ्खलायुक्त हाथी की तरह ललाट से धरती को स्पर्श करते हुए बाहुबली को प्रणाम किया। उसी क्षण महाराज के नेत्रों के संकेत से बताए हुए प्रासन को प्रतिहारी ने उसे दिखाया। सुवेग उस पर बैठ गया ।
(श्लोक ७०-७८) फिर कृपारूपी अमृत से धुली उज्ज्वल दृष्टि से सूवेग की ओर देखकर बाहुबली बोले--'हे सुवेग, आर्य भरत कुशल तो हैं न? पिता द्वारा लालित-पालित अयोध्या की समस्त प्रजा भी कुशल हैं न ? कामादि षड्डिपुत्रों की भांति भरत महाराज ने छह खण्डों को तो निर्विघ्नता के साथ जय कर लिया है न ? साठ हजार वर्षों तक बड़े-बड़े युद्ध कर सेनापति आदि सभी सकुशल लौट पाए हैं न ? सिन्दूर रंजित कुम्भ-स्थलों द्वारा आकाश को सन्ध्या की तरह रक्तिम कर देने वाले महाराज का हस्तियूथ तो कुशलपूर्वक हैं न ? हिमालय से लेकर समस्त पृथ्वी परिभ्रमणकारी समस्त उत्तम अश्व स्वस्थ तो हैं न ? अखण्ड प्राज्ञाकारी व समस्त राजाओं द्वारा सेवित आर्य भरत के दिन सुखपूर्वक व्यतीत हो रहे हैं न ?
(श्लोक ७९-८५) इस प्रकार प्रश्न करके बृषभात्मज बाहुबली जब मौन हुए तब निरुद्विग्न बने सुवेग करबद्ध होकर बोले-'समस्त पृथ्वी को सकुशल बनाने वाले राजा भरत की कुशलता तो स्वतःसिद्ध है। आपके अग्रज जिनकी रक्षा कर रहे हैं उनके सेनापति, अश्व,