Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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२५०] बांधने लगे कि दूर से ही वे पहचाने जा सकें। कोई मजबूत धुरी युक्त रथों में शत्रु सैन्य रूपी समुद्र में राह बनाने के लिए जलकान्त रत्न से घोड़े जोतने लगे। कोई अपने सारथियों को मजबूत कवच देने लगे। कारण, बिना सारथी के अश्वयुक्त रथ भी बेकार हो जाते हैं। कोई लौह कंकरण श्रेणी के सम्पर्क से अर्थात् हाथी दांत पर जो लौह कंकरण पहराया जाता है उससे कठोर बने हस्तो दन्तों की अपनी भुजा की तरह पूजा करने लगे। कोई भविष्य में जयलक्ष्मी के निवास स्थान से ध्वजायुक्त हौदे हस्तियों पर बांधने लगे। कोई हस्तीगण्ड से तत्काल प्रवाहित मद को शुभ शकुन समझ कर कस्तुरी की तरह उससे तिलक करने लगे। कोई मानो हस्तीमद के गन्ध से भरी वायु को सहन न कर पा रहे हों ऐसी भावना से महादुर्धर मन रूपी हाथियों पर प्रारोहण करने लगे। सभी महावत मानो रणोत्सव के शृङ्गार वस्त्र हों ऐसे स्वर्णवलय हाथियों को पहराने लगे । किसी-किसी ने हस्ती सूड से भी ऊँचे नलयुक्त नीलकमल की शोभा धारण करने वाले अर्थात् देखने में नीलकमल से लौह मुद्गर भी हाथी के दांतों पर बांधे। कोई महावत कृष्णलौह के तीक्ष्ण आच्छादन हाथी दांत पर पहराने लगे जिससे वे यमराज के दन्तों से लगने लगे। (श्लोक ३२७-३५१)
इसी समय राज्य अधिकारीगण आदेश देने लगे- 'सैन्यदल के पीछे अस्त्र-शस्त्र भरी गाड़ियाँ एवं माल लदे ऊँट शीघ्र ले आयो अन्यथा क्षिप्रशस्त्रनिक्षेपकारी वीरों के पास अस्त्र नहीं रहेंगे । कवच लदे ऊँटों को भी ले पायो। कारण, अनवरत युद्धरत सैनिकों के पहने हुए कवच टूटेंगे । रथियों के पीछे दूसरे प्रस्तुत रथ ले जायो। कारण, अस्त्र प्रहार से रथ इस प्रकार टूट जाते हैं जैसे पर्वत प्राघातों से । आगे के अश्वों के क्लान्त हो जाने पर अश्वारोही अन्य अश्व पर प्रारोहण कर युद्ध जारी रख सके इसलिए शत-शत अश्व अश्वारोहियों के पीछे ले जाने के लिए तैयार करो। प्रत्येक मुकुटबद्ध राजा के पोछे जाने के लिए हाथियों को सज्जित करो। क्योंकि युद्ध में एक हस्ती से काम नहीं चलता। सैनिकों के पीछे जल ले जाने के लिए बैल प्रस्तुत करो। कारण, युद्ध के श्रमरूपी, ग्रीष्म ऋतु के ताप से तपे वीरों के लिए वे प्रपालिकानों के कार्य करेंगे । औषधि. पति चन्द्रमा के भण्डार तुल्य और हिमगिरि के सार रूप सद्य: प्रस्तुत व्रणरोहिणी औषधों के थैले उठायो।' (श्लोक ३५२-३५८)