Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[२५६ है। पहले दीक्षा के समय पिताजी ने जैसे याचकों को सुवर्णादि दिया उसी प्रकार राज्य मेरे और भरत के मध्य विभाजित कर दिया था। मैं तो पिताजी ने जो कुछ दिया उसो से सन्तुष्ट था। कारण केवल धन के लिए क्यों किसी से वैर करूं। किन्तु समुद्र में जिस प्रकार बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है उसी प्रकार भरत छह खण्ड रूपी समुद्र में छोटी मछली की तरह रहने वाले राजाओं को बड़े मच्छ भरत ने खा डाला । पेटू जिस प्रकार भोजन से कभी सन्तुष्ट नहीं होता उसी प्रकार भरत इतने राज्यों को जोतने के पश्चात् भी सन्तुष्ट नहीं हुए हैं। उन्होंने अपने भाइयों के राज्य छीन लिए। अपने छोटे भाइयों के राज्य छीन कर उन्होंने अपना बड़प्पन स्वयं ही खो दिया। इतने दिन तक लोग जिस प्रकार पीतल को सोना और काँच को मणि समझ लेते हैं उसी प्रकार भ्रान्ति से मैंने भी भरत को गुरुजन समझा था। पिता द्वारा प्रदत्त व पूर्व पुरुषों की प्रदत्त भूमि अपने छोटे भाइयों से कोई साधारण राजा भी तब तक नहीं छीनता जब तक वे कोई अपराध न करें। फिर भरत ने ऐसा क्यों किया ? छोटे भाइयों का राज्य छीनने में क्या भरत को लज्जा नहीं पाती? उन्होंने मेरा राज्य लेने के लिए बुलवाया था। जहाज जैसे समुद्र का अतिक्रम कर तट के समीपवर्ती किसी पवत से धक्का खाता है उसी प्रकार भरत-खण्ड के समस्त राजाओं को जीतकर भरत ने मुझसे धक्का खाया है। लोभी मर्यादाहीन और राक्षस-से निर्दय भरत को जब मेरे भाइयों ने भाई समझने में लज्जा महसूस की तब मैं कौन से गुण के कारण उन्हें मानूगा । हे देवगण, आप सभासदों की तरह मध्यस्थ होकर बोलिए। भरत यदि स्व बल से मुझे वशीभूत कर सके तो करें। क्षत्रियों का यहो स्वाधीन मार्ग है। इतना होने पर भी यदि वे अभी लौटना सोच रहे हों तो सकुशल लौट सकते हैं। कारण मैं उनके जैसा लोभी नहीं हूं कि लौटते समय उन्हें किसी प्रकार को क्षति पहुंचाऊँगा । यह कैसे सम्भव है कि उनके द्वारा विजित समस्त भरत का मैं उपभोग करूं। केशरीसिंह क्या किसी का दिया हुया खाद्य खाता है ? कभी नहीं । उन्हें भरत क्षेत्र को जय करने में साठ हजार वर्ष लगे हैं यदि मैं उसे लेना चाहता तो उसी समय ले लेता। किन्तु इतने वर्षों के परिश्रम से प्राप्त उनके भरत क्षेत्र का वैभव धनपति के धन की तरह भाई होकर मैं कैसे लू। चम्पक का फल खाकर हाथी जैसे मदान्ध हो