Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 316
________________ [३०७ पुण्डरीक एक कोटि मुनियों सहित वहाँ रह गए। जैसे उद्व ेलित समुद्र तटभूमि के गर्त में रत्न समूह निक्षेप कर लौट जाता है उसी प्रकार प्रभु भी पुण्डरीक को वहाँ छोड़कर अन्यत्र विहार कर गए । जिस प्रकार उदयाचल पर्वत पर नक्षत्रों के साथ चन्द्रमा रहता है उसी प्रकार अन्य मुनियों के साथ पुण्डरीक स्वामी उस पर्वत पर रहने लगे । फिर प्रति संवेगी वे प्रभु की तरह मधुर वाणी से अनेक मुनियों को ऐसे कहने लगे : ( श्लोक ४२९-४३२) 'हे मुनिगरण, विजय की इच्छा रखने वालों का सीमान्त दुर्ग जैसे सहायक होता है उसी प्रकार मोक्ष की इच्छा रखने वाले हम लोगों के लिए इस पर्वत क्षेत्र के प्रभाव से सिद्धि मिलेगी । श्रतः हम लोगों को मुक्ति की द्वितीय साधना के समान संलेखना करनी उचित है | यह संलेखना द्रव्य और भाव दो प्रकार की है । साधुत्रों का सब प्रकार का उन्माद और महारोग के कारण को नष्ट करना द्रव्य संलेखना है एवं राग-द्व ेष मोह और समस्त कषाय रूपी स्वाभाविक शत्रुत्रों का विच्छेद करना भाव संलेखना है । ऐसा कहकर पण्डरीक गणधर ने एक कोटि श्रमणों सहित पहले सर्व प्रकार के सूक्ष्म और बादर प्रतिचारों की आलोचना की फिर प्रतिशुद्धि के लिए प ुनः महाव्रतों का प्रारोपण किया कारण दो-तीन बार वस्त्रों का धोना जैसे अधिकाधिक निर्मलता का कारण होता है उसी प्रकार प्रतिचार लेकर प ुनः साधुता का उच्चारण विशुद्धि व विशेष निर्मलता का कारण होता है । सर्वजीव मुझे क्षमा करें, मैं भी सब को क्षमा करता हूँ । समस्त जीवों से मेरी मैत्री है, वैर किसी से नहीं है - ऐसा कहकर प्रागाररहित और दुष्कर जीवन का अन्तिम अनशन व्रत उन्होंने समस्त मुनियों सहित ग्रहण किया । क्षपक श्रेणी पर चढ़ते हुए उन पराक्रमी पुण्डरीक गणधर के समस्त घाती कर्म जीर्ण रस्सी की तरह क्षय हो गए । अन्य एक कोटि साधुत्रों के कर्म भी उसी समय क्षय हो गए। कारण तप सभी के लिए एक-सा ही फलदायी होता है । एक मास की संलेखना के अन्तिम दिन चैत्र मास की पूर्णिमा को पुण्डरीक गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ । तदुपरान्त ग्रन्य सभी मुनिवरों को भी केवल ज्ञान प्राप्त हो गया । शुक्ल ध्यान के चतुर्थ पद पर स्थित उन प्रयोगी केवलियों ने अवशिष्ट ग्रघाती कर्मों को भी नष्ट कर मोक्षपद प्राप्त किया । उसी समय स्वर्ग से देवताओं ने आकर मरुदेवी माता की तरह भक्तिपूर्वक उनका मोक्ष

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