Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 318
________________ [३०९ वहने लगे। फिर वे असह्य दुःख से पीड़ित होकर परिवार सहित पैदल चलते हुए अष्टापद की ओर गए। पथ के कठोर कंकरों की भी उन्होंने परवाह नहीं की। कारण हर्ष की तरह शोक के समय भी कष्ट का भान नहीं होता। पाँवों में कंकर चुभ जाने के कारण खून गिरने लगा उससे उनके पदचिह्न इस प्रकार मिट्टी पर अंकित हो गए जैसे पालता के निशान अंकित हो जाते हैं। पर्वत पर चढ़ने में लेशमात्र भी शैथिल्य न हो इसलिए वे सम्मुख पाते हुए व्यक्तियों की भी उपेक्षा कर अग्रसर होने लगे। यद्यपि उनके मस्तक पर छत्र था फिर भी चलते समय उन्हें अत्यधिक गर्मी लग रही थी। क्योंकि मनस्ताप अमृतवर्षा से भी शान्त नहीं होता। शोकग्रस्त चक्रवर्ती ने हाथों का सहारा देने वाले सेवकों को भी पथ अवरोधक वृक्षों की शाखाओं के अग्रभाग की तरह एक अोर हटा दिया। नदी में प्रवाहित नौका जिस प्रकार तट की वृक्ष राजि को पीछे छोड़ती हुई आगे बढ़ जाती है उसी प्रकार भरतेश अग्रगामी छड़ीदारों को तेजी से पीछे छोड़ देते थे । चित्त के वेग की तरह चलने में उत्सुक महाराज भरत साथ-साथ चलती हुई चामर धारिणियों को भी पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाते थे। शीघ्रतापूर्वक चलने के कारण वृक्षों से पाहत मुक्तामाल्य छिन्न-भिन्न हो गयी है यह भी वे नहीं जान सके । उनका मन प्रभु ध्यान में लीन था अतः पार्श्व स्थित गिरिपालक को भी छड़ीदार द्वारा बुलवाया और उससे प्रभु की खबर पूछने लगे। ध्यानलीन योगी की तरह भरत न कुछ देख रहे थे न कुछ सुन रहे थे। वे केवल प्रभु का ध्यान कर रहे थे । वेग ने मानो पथ कम कर दिया हो इस प्रकार वे क्षण भर में अष्टापद के निकट पहुँचे । साधारण मनुष्य की तरह पैदल चल कर आने पर भी परिश्रम की परवाह न कर चक्री ने अष्टापद पर्वत पर आरोहण किया। शोक और हर्ष से व्याकुल चक्री ने पर्यकासन पर बैठे प्रभु को देखा। प्रभु को प्रदक्षिणा देकर एवं वन्दना कर देह की छाया की तरह वे उनके निकट बैठकर उपासना करने लगे। (श्लोक ४६२-४७९) प्रभु का ऐसा प्रभाव है फिर भी इन्द्र मेरे ऊपर बैठा हा है, यह सोचकर मानो इन्द्र का सिंहासन काँपने लगा। अवधिज्ञान से प्रासन के कांपने का कारण अवगत कर चौसठों इन्द्र उसी समय प्रभु के निकट पाए। जगत्पति को प्रदक्षिणा देकर दु:खित मन से

Loading...

Page Navigation
1 ... 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338