Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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होता है। अपने स्वामी की ऐसी शक्ति देखकर सैनिक आनन्दित हए और इसके पूर्व उनके मन में जो आशंका उत्पन्न हुई थी उसे और उसी की तरह प्रभु की भुजा की शृखला को भी तुरन्त खोल दिया।
__ (श्लोक ५५७-५७०) तदुपरान्त गायक जिस स्वर में गीत प्रारम्भ करता है उसी स्वर को पुनः पकड़ता है उसी भांति चक्रवर्ती हस्तीपृष्ठ पर पारोहण कर रणभूमि में गए। गंगा और यमुना के मध्य जिस प्रकार वेदि प्रदेश (दो पाव) शोभा पाता है उसी प्रकार दोनों सेनाओं के मध्य की भूमि शोभित होने लगी । जगत् संहार बन्द होने की जैसे किसी ने प्रेरणा दी है इस प्रकार पवन पृथ्वी की धूल को दूर करने लगा। देवगण समवसरण भूमि की तरह ही उस रणभूमि में सुगन्धित जल वर्षण करने लगे। मन्त्रविद् जैसे मण्डल की भूमि पर पुष्प वृष्टि करते हैं उसी प्रकार देवगण रणभूमि में पुष्पवृष्टि करने लगे। फिर कुजर की भांति गर्जन करते हुए दोनों राजकुजरों ने हस्ती से उतरकर रणभूमि में प्रवेश किया। महाबलवान और क्रीड़ा करते हुए चलने वाले उन दोनों ने पद-पद पर कर्मेन्द्र को प्राण भय से भयभीत किया।
(श्लोक ५७१-५७७) पहले उन्होंने दृष्टि-युद्ध करने की प्रतिज्ञा की। और मानो इन्द्र और ईशानेन्द्र हों इस प्रकार वे एक दूसरे को अनिमेष नेत्रों से देखने लगे। रक्त वर्णीय दोनों नेत्रों से दोनों वीर आमने-सामने खड़े होकर एक दूसरे को देखने लगे। एक दूसरे के सम्मुख खड़े वे दोनों सूर्य-चन्द्र से लग रहे थे। ध्यान करने वाले योगी की तरह निश्चल नेत्र किए वे बहुत देर तक स्थिर खड़े रहे । अन्ततः सूर्य किरणों से अाक्रान्त नील कमल की तरह ऋषभ देव के ज्येष्ठ पुत्र भरत के नेत्र बन्द हो गए । ऐसा लगा भरत क्षेत्र के छह खण्डों को विजय कर भरत ने जो कोत्ति प्राप्त की थी उसे अपने नेत्र सिंचित करने के बहाने अश्रुजल द्वारा पोंछ डाली । सुबह जिस प्रकार वृक्षादि अान्दोलित होते हैं देवतानों ने उसी प्रकार मस्तक हिलाया और महाबली बाहुबली पर पुष्प वर्षा की । सूर्योदय के समय के पक्षियों की तरह बाहुबली की जय होने के कारण सोमप्रभा आदि ने हर्ष ध्वनि की। कीतिरूपी नर्तकी ने मानो नृत्य करना प्रारम्भ किया हो इस प्रकार बाहबली के सैनिकों ने जयवाद्यों को बजाया। राजा भरत के सैनिक तो इस प्रकार शिथिल हो गए मानो वे मूच्छित हो गए हैं,