Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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लगी और भाई के पतन से भाई जैसे पर्वत चलित हो गए
(श्लोक ६४१-६५४) अपने भाई को इस प्रकार मूच्छित होकर गिरते देख बाहुबली मन ही मन विचार करने लगे-क्षत्रियों के वीर व्रत के प्राग्रह से यह एक दम बुरा है कि भाई के प्राण लेने के लिए भी लड़ाई होती है। यदि मेरे ये बड़े भाई जीवित नहीं रहे तो मेरा भी जीवित रहना वृथा है । ऐसा सोचते हुए आँखों के जल से भरत को सिंचित करते हुए बाहुबली अपने उत्तरीय से पखे की तरह राजा भरत को हवा करने लगे। ठीक ही कहा है, भाई भाई ही होता है।
(श्लोक ६५५-६५७) कुछ देर पश्चात् नींद से जागृत मनुष्य की तरह चक्रवर्ती की चेतना लौट आयी। वे उठ बैठे। उन्होंने देखा-उनका छोटा भाई बाहुबली दास की तरह उनके सम्मुख खड़ा है। उस समय दोनों का माथा नीचा हो गया। हाय ! महापुरुषों के लिए जय-पराजय दोनों ही लज्जा के विषय होते हैं।
(श्लोक ६५८-६५९) फिर चक्रवर्ती कुछ पीछे हट गए। कारण युद्ध के लिए इच्छुक व्यक्ति का यही लक्षण होता है। बाहुबली ने सोचा-अब आर्य भरत किस प्रकार का युद्ध करना चाह रहे हैं । कारण स्वाभिमानी पुरुष जब तक जीवित रहते हैं तब तक जरा भी स्वाभिमान छोड़ नहीं सकते। किन्तु भाई की हत्या से मेरा अपवाद होगा और वह शेष पर्यन्त शान्त नहीं होगा। बाहुबली ऐसा सोच ही रहे थे कि चक्रवर्ती ने यमराज-सा दण्ड ग्रहण कर लिया।
(श्लोक ६६०-६६३) शिखर से जिस प्रकार पर्वत शोभा पाता है, छायापथ से आकाश, उसी प्रकार दण्ड उत्तोलन से चक्रवर्ती शोभित होने लगे। धूमकेतु का भ्रम उत्पन्न करने वाले उस दण्ड को राजा भरत ने एक मुहर्त के लिए प्राकाश में घुमाया। फिर नवीन सिंह जिस प्रकार अपनी पूछ को धरती पर पछाड़ता है उसी प्रकार उस दण्ड से बाहुबली के मस्तक पर प्रहार किया। उस दण्ड के प्रहार से इतनी जोर से आवाज हुई जैसी सह्याद्रि पर्वत से ज्वार के समय समुद्र लहर के टकराने से होती है। एरण पर्वत पर रक्षित लोहा जैसे घन लोहे के प्राघात से चूर्ण हो जाता है उसी प्रकार बाहुबली के मस्तक पर रखा मुकुट दण्ड के आघात से चूर्ण हो गया । वृक्ष को हिलाने पर